अजब-गजब: इस देवी के दर्शन से चली जाती हैं आंखों की रोशनी, मांगती हैं लहू

रक्षाबंधन के दिन पत्‍थरमार युद्ध का आयोजन

मां वाराही देवी का मंदिर उत्‍तराखंड के लोहाघाट से तकरीबन 70 किलोमीटर देवीधुरा स्थित कस्‍बे में है। इस मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मंदिर में श्रावणी पूर्णिमा यानी कि रक्षाबंधन के दिन खास तरह की परंपरा ‘बग्‍वाल’ यानी कि पत्‍थरमार युद्ध का आयोजन किया जाता है।

मंदिर में मां के इस रूप की है मूर्ति

मां वाराही देवी मंदिर में ‘चंपा देवी’ और ‘लाल जीभ वाली महाकाली’ की मूर्ति स्‍थापित की गई है। बताया जाता है कि यहां मंदिर के पास ही रहने वाली स्‍थानीय जाति महर और फर्त्‍याल के लोग बारी-बारी से नर बलि देकर मां को प्रसन्‍न करते थे।

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गुफा में हुई थी स्‍थापना

मां वाराही देवी मंदिर की स्‍थापना के बारे में इतिहासकार बताते हैं कि उस समय इस स्‍थान पर रूहेलों ने कत्‍यूरी राजाओं पर आक्रमण कर दिया था। प्राण बचाने के संकट में कत्‍यूरी राजाओं ने वाराही की मूर्ति के साथ घने जंगलों के बीच बसी गुफा में शरण ली। इसके बाद गुफा में ही मां की मूर्ति की स्‍थापित करके वह मां की पूजा-आराधना करने लगे। मां भी उनकी मुरादें पूरी करती गईं और धीरे-धीरे दूर-दूर से भक्‍तजन मां के दरबार में अर्जी लगाने पहुंचने लगे।

मां वाराही मंदिर का इतिहास

वाराही देवी मंदिर के बारे में मान्‍यता है कि अगर कोई मां की इस मूर्ति के सीधे दर्शन कर ले तो उसकी आंखों की रोशनी चली जाती है। यही वजह है कि मां की मूर्ति को ताम्र पेटिका में रखा गया है।

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ऐसे शुरू हुई ‘बग्‍वाल’ की प्रथा

कथा मिलती है कि मां काली के गणों को प्रसन्‍न करने के लिए नरबलि की प्रथा थी। इसी प्रथा को निभाने के लिए जब नर की बारी आई तो वह एक वृद्धा का इकलौता पोता था। वृद्धा ने मां से उसके प्राणों की रक्षा करने की प्रार्थना की। देवी मां वृद्धा से प्रसन्‍न हुईं और उन्‍होंने यह कहा कि एक व्‍यक्ति के बराबर उन्‍हें खून चढ़ाया जाए। तब से ‘बग्‍वाल’ यानी कि पत्‍थरमार युद्ध की परंपरा शुरू हुई।

हर साल लगता है ‘बग्‍वाल’ मेला

मां वाराही देवी मंदिर परिसर में हर साल ‘बग्‍वाल’ मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें राजपूतों के चार खेमें गहरवाल, वलकिया, चम्‍याल और लमगड़‍िया शामिल होते हैं। यह मां की पूजा के बाद मैदान में युद्ध करते हैं। इसमें हर तरफ से पत्‍थर बरसाए जाते हैं। चोट से बचने के लिए लोग बांस से बनीं ढाल का प्रयोग करते हैं। लेकिन सरकार द्वारा इस युद्ध में पत्‍थर प्रयोग पर रोक लगने से अब यह फलों और फूलों से लड़ा जाता है। यह युद्ध 3 से 10 मिनट तक चलता है। वहीं मेला 15 दिनों तक के लिए आयोजित किया जाता है।

महाभारत काल से है जुड़ाव

मान्‍यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने वहां निवास किया था और भीम ने खेल-खेल में पहाड़ी के छोर पर कुछ शिलाएं फेंकी थीं। इन्‍हीं में से दो शिलाएं आज भी मंदिर के द्वार के निकट मौजूद हैं। इनमें से एक शिला को ‘राम शिला’ के नाम से जाना जाता है। वहीं दूसरी शिला पर हाथों के भी निशान हैं।

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