शक्तिपीठ है मां संकटा देवी का यह मंदिर
लालगंज क्षेत्र के गेगांसो में स्थापित संकटा देवी का मंदिर 16वें शक्तिपीठ के रूप में स्थापित है। स्थानीय नागरिकों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मंदिर की स्थापना 12 वीं शताब्दी में हुई थी। कथा मिलती है कि बैसवारा के क्षत्रिय राजा त्रिलोक चंद्र की कोई संतान नहीं थी। वह इससे काफी दु:खी रहते थे कि उनका वंश कैसे चलेगा? उनके बाद तो उनका वंश ही समाप्त हो जाएगा। अपनी इसी तकलीफ और चिंता को लेकर वह काशी पहुंचे। वहां उन्होंने महर्षि पुंजराज बाबा से अपनी व्यथा कही। इसके बाद बाबा ने राजा को पुत्र प्राप्ति का मार्ग बताया। उन्होंने राजा से पुत्रयेष्ठि यज्ञ करवाया। इसके समाप्त होते ही राजा को पुत्र रत्न प्राप्ति की शुभ सूचना मिली। कहा जाता है कि जिस स्थान पर राजा ने यह पुत्रयेष्ठि यज्ञ करवाया था उसी तपोभूमि पर यह मंदिर स्थित है।
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यह भी मिलती है कथा
गेगांसो के संकटा देवी मंदिर के विषय में यह भी कथा मिलती है कि एक बार मानसिक रूप से विक्षिप्त युवक ने माता संकटा की मूर्ति पर कुल्हाड़ी से वार कर दिया था। यह उसने माता की गर्दन पर किया था। इसके बाद उस जगह पर घाव हो गया और पानी निकलने लगा। तभी एक रात मां ने स्थानीय माली को सपने में दर्शन दिया और उससे वार वाली जगह घी का फाहा रखने को कहा। माली जब सुबह उठा तो मंदिर जाकर उसने मां के द्वारा दिए गये निर्देश के मुताबिक ही मूर्ति में गर्दन जहां घाव था वहां पर घी का फाहा रख दिया। इसके बाद मां की मूर्ति से पानी निकलना बंद हो गया। उस प्रहार का निशान आज भी मां की मूर्ति पर देखने को मिलता है।
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यह भी है मान्यता
देवी संकटा के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु तो दूर-दूर से आते ही हैं। लेकिन मान्यता है कि दिगंबर स्वामी अनंगबोध महराज भी संकटा देवी के दर्शन के लिए गंगा की जलधारा के ऊपर से चलकर आते हैं। बता दें कि दिगंबर स्वामी का आश्रम मां संकटा देवी मंदिर के सामने बहने वाली गंगा के पार स्थित है। लेकिन कहा जाता है कि हर दिन ब्रह्म मुहूर्त में अनंगबोध महाराज आज भी मां के दर्शनों के लिए आते हैं।
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चुनरी बांधने से पूरी हो जाती हैं मुरादें
मां संकटा देवी के मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर सच्चे मन से चुनरी बांधकर जो भी मुराद मांगी जाए। वह जरूर पूरी हो जाती है। यही वजह है कि यहां पर अविवाहित युवतियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए चुनरी बांधती हैं तो विवाह के बाद यहां पर आकर जोड़े से गंगा स्नानकर देवी मां का आशीर्वाद लेते हैं। इसके अलावा निसंतान दंपती यहां पर मां से संतान प्राप्ति की मन्नतें मांगते हैं। मन्नतें पूरी होने के बाद यहां पर मां को अतिप्रिय सिंघाड़े का लड्डू अर्पित करके मंदिर के बाहर प्रसार वितरित करते हैं।
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