राजा कृष्णचंद्र ने गोपाल भांड से पूछा, ‘क्या तुम कई भाषाओं के ज्ञाता अतिथि पंडित की मातृभाषा बता सकते हो?’ गोपाल भांड ने बड़ी विनम्रता के साथ कहा,’ मैं तो भाषाओं का जानकार हूं नहीं, यदि मुझे अपने हिसाब से पता करने की आजादी दी जाए तो मैं यह काम कर सकता हूं।’
राजा कृष्णचंद्र ने स्वीकृति दे दी। दरबार की सभा समाप्त होने के बाद सभी दरबारी सीढ़ियों से उतर रहे थे। गोपाल भांड ने तभी अतिथि पंडित को जोर का धक्का दिया। वे अपनी मातृभाषा में गाली देते हुए नीचे आ पहुंचे।
सभी जान गए कि उनकी मातृभाषा क्या है। गोपाल भांड ने विनम्रता से कहा, ‘देखिए, तोते को आप राम-राम और राधे-श्याम सिखाया करते हैं। वह भी हमेशा राम-नाम या राधे-श्याम सुनाया करता है।
लेकिन, जब बिल्ली आकर उसे दबोचना चाहती है, तो उसके मुख से टें-टें के सिवाय और कुछ नहीं निकलता। आराम के समय सब भाषाएं चल जाती हैं, किंतु आफत में मातृभाषा ही काम देती है।’ अतिथि पंडित जी बड़े लज्जित हुए।