जॉर्ज वॉशिंगटन यह सब देख रहे थे। ठेकेदार के पास आकर बोले, ‘इन मजदूरों की मदद क्यों नहीं करते? यदि एक आदमी और प्रयास करे तो हो सकता है पत्थर उठ जाएगा।’ ठेकेदार ने पहले तो कुछ नहीं कहा, फिर उन्हें ऊपर से नीचे तक देखते हुए रौब से बोला, ‘मैं दूसरों से काम लेता हूं, मैं खुद मजदूरी नहीं करता।’ जवाब सुनकर वॉशिंगटन अपने घोड़े से उतरे और पत्थर उठाने में मजदूरों की मदद करने लगे। उनके सहारा देने पर मजदूर पत्थर उठाने में सफल हो गए और वे उसे ऊपर ले गए। इसके बाद वॉशिंगटन वापस अपने घोड़े पर आकर बैठ गए और बोले, ‘सलाम ठेकेदार साहब, भविष्य में कभी तुम्हें एक व्यक्ति की कमी महसूस हो तो राष्ट्रपति भवन आकर जॉर्ज वॉशिंगटन को याद कर लेना।’
यह सुनते ही ठेकेदार चौंक पड़ा। वह उनके पैरों पर गिर पड़ा और माफी मांगने लगा। ठेकेदार के माफी मांगने पर वॉशिंगटन बोले, ‘मेहनत करने से कोई छोटा नहीं हो जाता। मजदूरों की मदद करने से तुम उनका सम्मान हासिल करोगे। याद रखो, मदद के लिए सदैव तैयार रहने वाले को ही समाज में प्रतिष्ठा हासिल होती है। जीवन में ऊंचाइयां हासिल करने के लिए अपने व्यवहार में नम्रता का होना बेहद जरूरी है।’ उस दिन से ठेकेदार का व्यवहार बिल्कुल बदल गया और वह सभी के साथ अत्यंत नम्रता से पेश आने लगा।– संकलन : आर.डी. अग्रवाल ‘प्रेमी’