एक बार तोलस्तोय सुबह पांच बजे चर्च गए। सोचा वहां शांत वातावरण में प्रार्थना सुनेंगे, लेकिन वहां पहुंचे तो देखा कि एक आदमी उनसे पहले भी पहुंचा हुआ है। वह आदमी प्रार्थना कर रहा था, मैंने इतने पाप किए हैं कि मुझे कुछ कहते शर्म आ रही है। हे भगवान, मुझ पापी को क्षमा करना। तोलस्तोय ने सुना, तो सोचने लगे कि अगर किसी अपराधी को अपराधी कहें, तो वह आग-बबूला होकर मारने दौड़ता है और एक यह है कि खुद ही खुद को अपराधी मान रहा है।
पाए गए तो तोलस्तोय उस व्यक्ति को पहचान गए। वह नगर का एक लखपति सेठ था। ज्योंही उसकी नजर तोलस्तोय पर पड़ी, वह घबरा कर बोला, आपने मेरे शब्द सुने तो नहीं? तोलस्तोय ने कहा, हां सुने तो थे। मैं तो तुम्हारी स्वीकारोक्ति सुनकर धन्य हो गया। सेठ बोला, लेकिन तुम यह बात किसी से न कहना, क्योंकि ये बात मेरे और परमेश्वर के बीच की थी। मैं तुम्हें सुनाना नहीं चाहता था। फिर अचानक कुछ नाराजगी से बोला, अगर तुमने यह बात किसी को बताई तो मुझसे बुरा कोई न होगा।
यह सुनकर तोलस्तोय दंग रह गए और बोले, अभी तो तुमने कहा कि तुमने इतने पाप किए हैं कि तुम्हें शर्म आ रही है। सेठ बोला, हां, मगर मैंने जो कुछ कहा था, परमात्मा के लिए कहा था, दुनिया के लिए नहीं। तोलस्तोय सोचने लगे कि यह दुनिया कितनी मूर्ख है कि लोगों से डरती है मगर भगवान से नहीं। जो आदमी लोगों के सामने अपनी सचाई प्रकट नहीं कर सकता, वह भला परमात्मा के समक्ष कैसे सच्चा हो सकता है? लोग पाप करते डरते भी नहीं और फिर यह भी सोचते हैं कि पाप का पता भी न चले और भगवान उन्हें माफ भी कर दे। जाते-जाते सेठ से तोलस्तोय बोले, सेठजी, पाप की सजा तो इसी दुनिया में भोगनी पड़ेगी।
संकलन : सुभाष चन्द्र शर्मा