एक दिन तेलुगू भाषा के प्रसिद्ध विद्वान और संत कृष्णराव प्रवचन करने उसके गांव आए। पोतन्ना भी उनके दर्शन करने गया। उनके व्यक्तित्व से पोतन्ना इतना प्रभावित हुआ कि नियमित उनके प्रवचनों में जाने लगा। धीरे-धीरे संत से उसका परिचय हो गया। एक दिन उसने संत कृष्णराव को भागवत का अनुवाद पढ़ने दिया। संत ने ध्यान से उसे पढ़ा और बड़े प्रभावित हुए। कृष्णराव ने पोतन्ना से कहा, ‘तुम्हारा भागवत का तेलुगू अनुवाद बहुत अच्छा है। इसकी भाषा अत्यंत समर्थ और सक्षम है। तुम इसे राजा को भेंट करो, वह धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। इसे देखकर अवश्य खुश होंगे। संभव है, खुश होकर राजा तुम्हें कई गांवों की जागीर भी दे दें।’
यह सुनकर पोतन्ना खुश नहीं हुआ। उसने विनम्रतापूर्वक संत कृष्ण राव से कहा, ‘मैं साधारण किसान हूं। मेहनत से खेती करता हूं, और अपने परिवार का पालन-पोषण करता हूं। मेरे पास कोई खास धन-संपत्ति नहीं है, लेकिन मैं और मेरा पूरा परिवार पूरी तरह से सुखी और संतुष्ट हैं। हम सब सुख की नींद सोते हैं। यदि राजा ने प्रसन्न होकर कोई जागीर दे दी तो वह मेरी भक्ति में बाधक ही बनेगी।’ पोतन्ना का उत्तर सुनकर संत कृष्णराव ने उसे गले से लगाते हुए कहा, ‘पोतन्ना तुम सच्चे संत हो।’
संकलन : रमेश जैन