देश को आजाद कराने का जज्बा उन दिनों हर दिल में पल रहा था। माहौल कुछ ऐसा हो गया था कि बच्चा-बच्चा चाहता था फिरंगी सरकार का बोरिया-बिस्तर बांध कर देश से बाहर कर दिया जाए। गोपाल सेन भी उन लोगों में थे जिन्हें गुलामी की बेड़ियां रास नहीं आ रही थीं। वह जल्द से जल्द देश को आजाद कराना चाहते थे। वह जब भी किसी अंग्रेज को भारतीय पर अत्याचार करते देखते, तो उनका खून खौल उठता। उन दिनों बर्मा में आजाद हिंद फौज सक्रिय थी। वह हर संभव तरीके से आजाद हिंद फौज की मदद कर रहे थे।
दुर्भाग्य से अंग्रेजों को गोपाल सेन की गतिविधियों के बारे में पता चल गया और उन्होंने उनके मकान पर छापा मार दिया। गोपाल सेन को जैसे ही पता चला कि अंग्रेजों ने उनके घर पर धावा बोला है, वह उनसे बचने के लिए छत पर जाकर छिप गए। अंग्रेज पुलिस भी उन्हें तलाशते हुए छत पर पहुंच गई। वहां गोपाल सेन ने अंग्रेजों से मुकाबला किया। कड़े प्रतिरोध की वजह से अंग्रेज उनके पास तक नहीं पहुंच पा रहे थे। लेकिन पुलिसकर्मियों की संख्या ज्यादा थी और गोपाल सेन अकेले। आखिर अंग्रेज पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। जल्दी ही वह पकड़े गए। लेकिन गोपाल सेन हार मानने को तैयार नहीं थे। इससे नाराज पुलिस वालों ने पकड़ने के बाद उन्हें तीन मंजिला छत से नीचे सड़क पर फेंक दिया।
गोपाल सेन सड़क पर गिरकर लहूलुहान हो गए। वह बुरी तरह तड़प रहे थे। खून से लथपथ गोपाल सेन के मुंह से उस समय भी भारत माता की जय के नारे निकल रहे थे। कुछ ही समय बाद गोपाल सेन की देह शांत हो गया। यह घटना 29 सितंबर 1944 को हुई थी। इतिहास गवाह है कि ऐसे क्रांतिकारियों के बलिदान से ही देश को आजादी मिली है।
संकलन : रेनू सैनी