घटना 29 अप्रैल, 1942 की है। बंगाल के मिदनापुर जिले के तमलकपुर पुलिस स्टेशन पर कब्जा करने के लिए जुलूस बढ़ रहा था। जुलूस में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक थी। जुलूस का नेतृत्व करती महिला हाथ में तिरंगा थामे लगातार ‘वंदे मातरम’ का नारा लगाती चल रही थी। महात्मा गांधी का जादू इन लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा था। सरकारी कार्यालयों सहित पुलिस स्टेशनों पर कब्जा और समानांतर सरकार स्थापित करने, या फिर मर जाने पर ये लोग आमादा थे। अब पुलिस के पास गोली चलाने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं था।
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जुलूस का नेतृत्व करने वाली इस महिला का नाम मातंगिनी हाजरा था। पुलिस की चेतावनी के बावजूद हाजरा वंदे मातरम का नारा लगाती रहीं। आखिरकार जब पुलिस गोलियां दागने लगी तो हाजरा ने कहा, ‘ये अहिंसक लोग हैं। किसी के पास लाठी-डंडा तक नहीं है। इन पर गोली चलाना अन्याय है।’ पुलिस ने हाजरा से जुलूस वापस लेने के लिए कहा, लेकिन वह वापसी के लिए तैयार नहीं हुईं। पुलिस ने आखिर में उन्हें गोली का निशाना बना लिया। हाजरा फिर भी नहीं डरीं और तिरंगे को ऊपर करके वंदे मातरम का नारा लगाती रहीं। अगली दो गोलियां फिर उन्हीं पर दागी गईं।
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तब जुलूस तो तितर-बितर हो गया, लेकिन हाजरा की कुर्बानी ने असंख्य लोगों को आजादी का दीवाना बनाया और पुलिस और प्रशासन में भी भय पैदा किया। इसके पहले भी वह सविनय अवज्ञा और नमक सत्याग्रह सहित अनेक आंदोलनों में सक्रिय भूमिका अदा कर चुकी थीं और जेल की यातना भी सह चुकी थीं। आज उनके नाम पर सड़कें हैं, स्कूल हैं और गलियां हैं, लेकिन 1977 में कोलकाता में बनी स्टैच्यू इस महिला क्रांतिकारी की पहली स्टैच्यू है जो आगंतुकों से कहती है कि जिस आजादी को हमारी कुर्बानियों के बाद हासिल किया गया है, उसकी सुरक्षा और हिफाजत अब तुम्हारे हाथ में है।
संकलन : हरिप्रसाद राय