प्राचीन वास्तु नियमों के अनुसार स्थानीय पर्यावरण को विशेष महत्व दिया जाता रहा है। यही कारण है कि पहाड़ी क्षेत्रों में जहां हिमपात रोधी मकान बनाए जाते हैं, वहीं गर्म और रेगिस्तानी इलाके में टीलानुमा या गोल मकानों को प्राथमिकता दी जाती रही है। इन सबके पीछे वजह, मौसम के अनुकूल खुद को ढालना तो है ही, साथ ही अग्नि, वायु और जल आदि के प्रवाह से होने वाले हानि-लाभ से बचाव करना भी रहा है। वास्तु कार्य कराने से पहले और निर्माण पूरा हो जाने के बाद भी कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए, जैसे :
1. पंचतत्व यानी पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश को वांछित भवन के अनुकूल बनाना वास्तु शास्त्र का मुख्य लक्ष्य है। इसलिए अनुकूल दिशाओं को ध्यान में रखकर मिट्टी का परीक्षण करके और किफायती भवन सामग्री का प्रयोग करके, छोटी-सी जगह में भी मकान बना लेना एक उपलब्धि है।
2. मकान बन जाने के बाद भूस्वामी की राशि के अनुकूल टाइल्स या रंग-रोगन करना चाहिए। सिंह राशि वाले व्यक्ति को नीला और मकर राशि वाले व्यक्ति को पीला रंग-रोगन कराने से बचना चाहिए। बने-बनाए घर का विस्तार करना हो, तो सिर्फ एक ही दिशा में ही विस्तार नहीं करना चाहिए। ऐसी योजना बनानी चाहिए, जिससे मकान के चारों ओर विस्तार किया जा सके।
3. घर बनाने के बाद किसी वास्तु दोष का एहसास हो, तो उसका समाधान तुरंत करना चाहिए। कमरे की आंतरिक साज-सज्जा वास्तु नियमों के अनुसार ही करनी चाहिए।
4. फैक्ट्री, दुकान, होटल, गेस्ट हाउस आदि का ईशान कोण कभी भी बाकी अन्य कोणों से ऊंचा नहीं होना चाहिए। ऐसी इमारत पर अगर ईशान कोण के अलावा, किसी अन्य दिशा या कोण में गहरे गड्ढे, खाई, ढलान, कुआं या हैंडपंप आदि हो, तो जमीन के मालिक को अनेक बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। ईशान कोण में जब पूर्व की ओर कोई गड्ढा, दरार या शौचालय आदि हो, तो कमर्शल कॉम्प्लेक्स के मालिक की संतानें विकृत होती हैं।
5. दुकान, फैक्ट्री, कारखाने, मिल अथवा गेस्ट हाउस का मुख्य द्वार कभी भी कोण में नहीं होना चाहिए।
6. मुख्य द्वार के आसपास सुरक्षा उपकरण, चौकीदार या बंदूकधारी कर्मचारी के बैठने की जगह ऐसी बनानी चाहिए, जो इमारत के अंदर हो, परंतु एकदम सामने न पड़े।
7. ईशान कोण में कभी भी मच्छरदानी, झाड़ू, जूते या कूड़ा-करकट रखने का स्थान नहीं बनाना चाहिए। यदि व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स हो तो रिसेप्शन, प्रशासनिक ब्लॉक, कंसल्टिंग रूम आदि उत्तर-पूर्व की ओर होने चाहिए।
8. पूजा कक्ष में बैठते समय मुंह ईशान कोण या पूर्व दिशा की ओर करके बैठना चाहिए। किचन गार्डन, साग-सब्जी आदि के खेत हमेशा दक्षिण-पश्चिम कोण की तरफ होने चाहिए।
9. व्यापारिक स्थल या दुकान आदि के दरवाजों की जांच परख नियमित रूप से करते रहना चाहिए। कुछ गुप्त जगह ऐसी छोड़नी चाहिए, जहां आपातकाल में दो-चार व्यक्ति छिप सकें। बड़ी इमारत में कोई न कोई गुप्त द्वार भी पश्चिम या उत्तर-पश्चिम की ओर छोड़ना चाहिए। मकान या दुकान के आगे का भाग साफ-सुथरा होना चाहिए और हल्के-फुल्के फूलों से सजाकर रखना चाहिए।