आस्था भरी खूबसूरती यानी पुरी

प्रीतंभरा प्रकाश
हिलगिरी, नीलाद्रि, हिलाचल, पुरुषोत्तम, संखक्षेत्र, जगन्नाथ धाम और जगन्नाथ पुरी- जाने कितने ही नाम रहे हैं पुरी के। उड़ीसा की यह खास जगह बंगाल की खाड़ी व सुनहरी रेत वाले बीच और भगवान जगन्नाथ के मंदिर के चलते काफी मशहूर है। पूर्णिमा की रात समुद्री लहरें देखने लायक होती हैं, तो शहर के हर कोने में भगवान जगन्नाथ का प्रभाव साफ नजर आता है। तभी तो यहां आपको पुरोहितों व पंडों की कोई कमी नहीं मिलेगी।

जगन्नाथ मंदिर
यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है। भगवान कृष्ण को समर्पित होने की वजह से इस मंदिर का खास महत्व है और इसकी शिल्प कला देखने लायक है। उडि़या स्थापत्य कला का प्रतीक यह मंदिर देश के चार धामों में एक है और इसमेंं हिंदुओं के अलावा किसी और को जाने की इजाजत नहीं है। मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है और इसके शिखर पर भगवान विष्णु का श्रीचक्र है। इसे नीलचक्र भी कहा जाता है। वैसे, मंदिर की रसोई भी कुछ कम नहीं है। यहां की विशाल रसोई में भगवान का महाप्रसाद बनता है। यहां करीब 500 रसोइये और उनके 300 सहयोगी काम करते हैं।

सूर्य मंदिर
कोणार्क के सूर्य मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। भगवान सूर्य के रथ के रूप में बना हुआ यह मंदिर कलिंग शैली का है। रथ को सात घोड़ों को खींचते हुए दिखाया गया है, जिसमें से अब एक ही घोड़ा बचा है। रथ के पहिए कोणार्क की पहचान बन गए हैं और इसके 12 चक्र साल के 12 महीनों को बताते हैं। लाल बलुआ पत्थर और काले ग्रेनाइट पत्थर से इसे राजा नृसिंहदेव ने बनवाया था और यह शिल्प कला का एक बेजोड़ नमूना है। अंग्रेजी में इसे ‘ब्लैक पगोड़ा’ भी कहते हैं।

चिल्का लेक
करीब 85 किमी की दूरी पर चिल्का लेक है। अगर यहां जाएं, तो बोटिंग का मजा जरूर लें। यहां आपको लाल केकड़े दिखेंगे, जो कहीं और देखने को नहीं मिलेंगे। उछलती डॉल्फिन के अलावा, कई अप्रवासी पंछी भी यहां आपको नजर आएंगे। 70 किमी लंबी और 30 किमी चौड़ी यह झील समुद्र का ही हिस्सा है। महानदी की लाई गई मिट्टी के जमा हो जाने से समंदर से अलग होकर यह हिस्सा एक झील में बदल गया। गौरतलब है कि भारत की नाशपाती के आकार वाली यह देश की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी समुद्री झील है। इसके एक ओर नीला सागर और दूसरी ओर हरी-भरी पहाडि़यां मिलकर मोहक नजारा बनाती हैं।

रथयात्रा
जगन्नाथ मंदिर का सालाना रथयात्रा उत्सव न्यूज चैनलों की सुर्खियों में रहता है। मंदिर के तीनों देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा तीन शानदार रथों में यात्रा पर निकलते हैं। इसे देखने के लिए जुलाई में यहां ढेरों पर्यटक आते हैं।

पुरी बीच फेस्टिवल
पुरी का समंदर बहुत ही लंबा है और चौड़ा भी। यहां आकर आध्यात्मिक शांति महसूस होती है। हर साल नवंबर में होने वाला पुरी बीच फेस्टिवल टूरिस्टों को अपनी ओर खींचता है। इस सेलिब्रेशन के दौरान रोड शो और फैशन शो होते हैं। तरह-तरह की खरीदारी भी इस दौरान कर सकते हैं। लोकल लोगों से बातचीत का मौका भी मिलता है। बीच के आसपास विजिटर्स के रहने का इंतजाम भी होता है।
यह भी देखें
पास में ही पीपली गांव है। यहां का एप्लीक वर्क मशहूर है। इसके अलावा, रघुराजपुर और बालाकाटी गांव के हस्तशिल्पकारों से भी मिलना न भूलें।

शॉपिंग
शाम घिरते ही पुरी के सी-बीच पर एक छोटा मार्केट-सा लग जाता है और तब शांत समंदर के तट पर शोरगुल सुनाई देने लगता है। सीप से बनी चीजें यहां आपको खूब मिलेंगी। हैंडीक्राफ्ट, कल्चर्ड मोती, नक्काशीदार पत्थर और मूर्तियां आप यहां से खरीद सकते हें। शॉपिंग करते समय बार्गेन करना मत भूलिए।

कैसे पहुंचें
नजदीकी एयरपोर्ट भुवनेश्वर का बीजू पटनायक एयरपोर्ट है। यह पुरी से मात्र 56 किमी की दूरी है। टैक्सी से यह दूरी तय कर सकते हैं। दिल्ली से यह एयरपोर्ट कनेक्टेड है। नई दिल्ली से पुरी रेलवे स्टेशन के लिए नियमित ट्रेनें हैं। साईटसीइंग के लिए उड़ीसा टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की डीलक्स बसें भी उपलब्ध हैं। इनमें बैठकर आप भुवनेश्वर, कोणार्क और कटक तक की सैर कर सकते हैं।
कब जाएं
पुरी जाने का बेहतरीन समय नवंबर से मार्च के बीच है। वैसे, यहां पूरे साल जाया जा सकता है।

कहां ठहरें
यहां ठहरने के लिए आपके पास सीसाइड रिजॉर्ट, लग्जरी होटल, होम स्टे जैसे तमाम ऑप्शंस हैं। इसके अलावा, कुछ गेस्ट हाउस भी हैं। यानी आप बजट से लेकर लग्जरी स्टे के बीच अपनी चॉइस के हिसाब से ठहरने का प्रोग्राम बना सकते हैं।