इनके विचार से फ्रांस में आई क्रांति, दुनिया को समझाया अर्थशास्त्र, राजनीति और लोकतंत्र

विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो की जिंदगी लाचारी और बदहाली से भरी रही। सन 1712 में उन्हें जन्म देते ही उनकी मां मर गई थी। महज 10 वर्ष में पिता उन्हें छोड़कर भाग गए। स्नेह से वंचित बालक रूसो को उनके चाचा ने 14 वर्ष की आयु में पत्थर तराशने का काम सीखने के लिए एक ऐसे व्यक्ति के हवाले कर दिया जो उन्हें बेरहमी से पीटा करता था। तंग आकर वह फ्रांस चले गए। जिंदा रहने के लिए छोटी-मोटी चोरियां करने लगे। यहां तक कि सड़कों पर भीख मांगने को भी मजबूर हुए। हर तरह से बदनाम रूसो को दोस्तों ने भी ठुकरा दिया।

जिन दिनों वह भीख मांगकर गुजारा कर रहे थे, येरेसी नाम की एक अनपढ़ महिला ने उन्हें सहारा दिया। उससे रूसो के पांच बच्चे हुए, पर उसने उनमें से एक को भी स्वीकार नहीं किया। आखिरकार सभी बच्चों को अनाथालय में भिजवाना पड़ा। बचपन की ठोकरें और खराब हालात के चलते उन्हें अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई। लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और अपनी सोच ऊंची रखी। बुरे हालात उनके विचारों में सेंध नहीं लगा पाए। अपने इस अनुभव के बूते वह समाचार पत्रों में ऐसे विचारणीय लेख लिखने लगे जिसने जनता को बहुत प्रभावित किया। धर्म और राजतंत्र विरोधी उनके विचारों के चलते जिनेवा लौटने पर उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया गया। तत्कालीन फ्रांस सरकार ने भी उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया।

वह पेरिस छोड़कर 16 साल तक इधर-उधर भागते फिरे। जान बचाने के लिए उन्हें जर्मनी और इंग्लैंड भी जाना पड़ा। फ्रांस की राज्य क्रांति से 11 वर्ष पहले सन 1778 में 66 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। आजीवन संघर्ष करने और प्रतिकूल हालात से जूझते रहने के बावजूद उन्होंने दुनिया को प्रकृति, शिक्षा, अर्थशास्त्र, राजनीति और लोकतंत्र समझाया। सबसे बड़ी बात, उनके विचार फ्रांस में क्रांति लाए।– संकलन : दाताराम चमोली