जस्थान के पर्वतीय क्षेत्र में डाकू दुर्जनसिंह का बड़ा आतंक था। वह बड़ा क्रूर एवं अत्याचारी था। लोग उसके नाम से कांपते थे। एक दिन उस क्षेत्र में एक जैनमुनि धर्म प्रचार करते पहुंचे। दुर्जनसिंह ने सदाचार व अहिंसा के महत्व पर उनका प्रवचन सुना तो उसे महसूस हुआ कि वह घोर पाप कर्म में जीवन बिता रहा है। उसे रात भर नींद नहीं आई। सवेरे वह मुनिश्री के पास पहुंचा। उनके चरण पकड़ कर बोला, ‘महाराज, मुझे सुख-शांति कैसे प्राप्त हो/ लगता है कि मैं पापों के बोझ से दबा जा रहा हूं।’
मुनिश्री ने उसके मन में बदलाव की सच्ची तड़प देखी और कहा, ‘चलो मेरे साथ पहाड़ी पर घूमने।’ डाकू दुर्जनसिंह जब उनके साथ चलने लगा तो उन्होंने तीन बड़े पत्थरों की ओर इशारा कर कहा, ‘इन्हें ऊपर पहुंचाना है, सिर पर रख लो।’ पत्थर भारी थे। कुछ ही ऊपर चढ़ने के बाद वह बोला, ‘महाराज मुझसे इतना भार लिए नहीं चढ़ा जाता।’ मुनि ने कहा, ‘एक पत्थर गिरा दो।’ उसने एक पत्थर गिरा दिया और फिर चलने लगा। कुछ दूर चलने के बाद उसने कहा, ‘महाराज, दो पत्थर लेकर चलना भी भारी पड़ रहा है।’ मुनि ने दूसरा पत्थर भी सिर से नीचे गिरा देने को कहा। कुछ और ऊंचाई पर जाने के बाद उसे फिर परेशानी होने लगी। वह बोला, ‘एक पत्थर का भार भी भारी पड़ रहा है।’ मुनि ने कहा, ‘इसे भी गिरा दो।’ अब वह भारहीन होकर मुनि के साथ आनंद ऊपर चढ़ता चला गया।
हथेली के आकार में छुपा है समृद्धि का रहस्य
ऊपर पहुंचकर मुनि ने समझाया, ‘जिस प्रकार पत्थरों का भार ऊंचाई पर पहुंचने में बाधा डाल रहा था, उसी तरह पापों का बोझ शांति में बाधा डालता है। जब तक तुम एक-एक करके लोभ, क्रोध और हिंसा आदि का त्याग न कर दोगे तुम शांति की मंजिल तक नहीं पहुंच सकोगे। डाकू दुर्जन सिंह को शांति का मार्ग मिल गया था।
संकलन : ललित गर्ग