इसलिए गीता और उपनिषदों को अब हर किसी को पढना चाहिए

यह संसार तमाम तरह की आपदाओं से जूझ रहा है, ऐसे में अगर कठिनाइयों से बचाना है, तो धर्म की पुनः संस्थापना बहुत ज़रूरी है। धार्मिक ग्रंथों को आम आदमी की ज़िंदगी में वापस लाना होगा, तब ही धर्म पुनर्जीवित होगा और मानव का जीवन मानवीय मूल्यों पर कायम रह पाएगा।

भोग का धर्म
एक नए तरह के अध्यात्म और एक नए तरीके के धर्म का निर्माण किया जा रहा है चोरी-छुपे, जिसमें धर्मग्रंथों- गीता एवं उपनिषदों के लिए कोई स्थान नहीं है। उसमें किस चीज़ के लिए स्थान है? उसमें स्थान है लोकबुद्धि’ के लिए, जिसको आप कहते हैं साधारण बुद्धि – कॉमनसेंस। उसमें वो बातें चलती हैं जो सब जनसामान्य को पता हैं। बस जो बातें जनसामान्य में पहले ही प्रचलन में है, उन्हीं बातों को थोड़ा और सुधार करके बोल दो, तुम ‘गुरु’ कहला जाओगे। जैसी जनमानस की चेतना है, जो उनका केंद्र है, उसी केंद्र से कोई बात चकाचौंध के साथ बोल दो, तुम ‘गुरु’ कहला जाओगे। उदाहरण के लिए: अगर तुम किसी कंपनी के कर्मचारियों, एंप्लाइज़ के साथ बैठे हो, तो उन्हें ये सिखाओ की कैसे उन्हें अपनी उत्पादकता यानि प्रोडक्टिविटी बढ़ानी है?

‘धर्म’ का ये काम नहीं होता! न धर्मगुरु का ये काम हो सकता है कि वो इस बात पर सत्र ले, प्रवचन दे कि “कंपनी के कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी कैसे बढ़े?” धर्म का काम है: ‘मूलभूत सवाल उठाना’। मूलभूत सवाल ये होगा कि “तुम यहाँ काम कर ही क्यों रहे हो? क्या तुम्हें इस कंपनी में होना भी चाहिए?” लेकिन ये जो नया धर्म प्रचलित हो रहा है यह भोग का धर्म है! यह गहरी, ईमानदार और खूंखार जिज्ञासा का धर्म नहीं है। इसमें शेर की दहाड़ नहीं है, इसमें तो सियार का अवसरवाद है, ऑपरचुनिज़्म!

कौन खोद रहा है सनातन धर्म की नींव?
इस समय पर ख़ासतौर पर सनातन धर्म के लिए बहुत आवश्यक है कि उसे इस नए धर्म से बचाया जाए जो बोलता है कि हमें कोई ग्रंथ वगैरह स्वीकार नहीं। ऐसे धर्मगुरु जो ये सिखा रहे हैं कि आध्यात्मिक ग्रंथ पढने की कभी कोई आवश्यकता नहीं है, वो सनातन धर्म की नींव खोदे दे रहे हैं। जितने भी मूल, पुराने धर्म या मज़हब थे, वो सब आज के इस नये झूठे धर्म से खतरे में हैं।

भोग धर्म से है खतरा!
बहुत सारे इस वक्त पर गुरु और प्रवचन कर्ता हैं जिनका काम ही ये बताना है कि किताबों को छोड़ो और हमारी सुनो; और कई तो ऐसे हैं कि पुरानी किताबों का अर्थ ही उल्टा करके उनमें अद्भुत नए-नए तरह के अर्थ बता रहे हैं। इनसे असली खतरा है सनातन धर्म को। अगर आपको विरोध करना ही है तो दूसरे धर्मों का विरोध करना छोड़ो, सनातन धर्म को पहले इन भितर-घातियों से बचाओ। जो भी आपको व्यक्ति मिले जो कहे मैं फलाने धर्म का अनुयायी हूं, लेकिन अपने धर्म की मैंने कोई किताब वगैरह नहीं पढ़ी है, समझ लेना ये व्यक्ति उस धर्म का अनुयायी ही नहीं है। ये वास्तव में किसी नए अन्य धर्म का मानने वाला है। उस नए धर्म को तुम सीधे-सीधे नाम दे सकते हो – कंज़्मप्शनिज़्म। भोग धर्म, कंज़्मप्शनिज़्म या इगोइज़म, अहंकार-धर्म या हैप्पीज़्म, सुखधर्म, प्लेज़रिज़्म।

जहां शास्त्र नहीं है, वहां ज़बरदस्त अंधेरा है!
धर्म के जो नए-नए गुरु निकल रहे हैं वो साफ़ बताते नहीं कि वो वास्तव में कंज़्मप्शनिज़्म के पुजारी हैं और कंज़्मप्शनिज़्म के प्रचारक हैं। वो कहते हैं, “नहीं हम तो सनातन धर्मी ही हैं” भाषा सनातन धर्म की होगी, मूर्तियां सनातन धर्म की होंगी लेकिन बात बिल्कुल सनातन धर्म के विपरीत होगी, और इसके लिए फ़िर उनकी मजबूरी बन जाती है कि वो सबसे कहें कि किताबें मत पढ़ लेना क्योंकि तुमने किताब पढ़ी नहीं कि तुम जान जाओगे कि तुम भी गलत ज़िन्दगी जी रहे हो और मैं तुम्हें गलत सीख दे रहा हूं।

समाधान!
आम आदमी की जिंदगी में ग्रंथों को वापस लाना है। जो बात उपनिषदों में और गीताओं में कही गई हैं वो बात ‘कालातीत’ हैं उस बात को जन-जन तक पहुंचाना है, क्योंकि अगर वो बातें आपकी जिंदगी में नहीं हैं तो, आपकी जिंदगी मानवीय मूल्यों से दूर जा रही है।

आचार्य प्रशांत