इस तरह की होगी भगवान राम की मूर्ति
राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के मुताबिक, राम लला की प्रतिमा तैयार करने के लिए मूर्ति निर्माण में देश के मशहूर शिल्पियों की तीन सदस्यीय टीम काम कर रही है। खड़ी मुद्रा की प्रतिमा के कई छोटे मॉडल आ चुके हैं। उनमें से किसी एक का चयन मंदिर ट्रस्ट करेगा। यह प्रतिमा साढ़े पांच फीट ऊंची होगी, जिसके नीचे करीब 3 फुट ऊंचा स्टैंड बनाया जाएगा। खगोलशास्त्री इसके लिए ऐसी व्यवस्था कर रहे हैं, जिससे रामनवमी को दोपहर 12 बजे प्रभु राम के जन्म के अवसर पर रामलला के ललाट पर सूर्य की किरणें पड़कर इसे प्रकाशमान कर सकें।
शालिग्राम पत्थर का महत्व
हिंदू धर्म में शालिग्राम का विशेष महत्व है। यह पत्थर एक तरह का जीवाश्म पत्थर है, यह नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गण्डकी नदी के तट पर पाया जाता है। बताया जाता है कि 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं, जिनमें 24 प्रकार को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि जिस घर में शालिग्राम का पत्थर होता है, वहां घर में सुख-शांति बनी रहती है और आपसी प्रेम बना रहता है। साथ ही माता लक्ष्मी की भी कृपा सदैव बनी रहती है। शालिग्राम की उपस्थिति लक्ष्मीजी को आकर्षित करती है।
भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जुड़ा है शालिग्राम
बताया जाता है कि 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं, जिनमें 24 प्रकार को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जोड़ा जाता है। ये सभी 24 शालिग्राम वर्ष की 24 एकादशियों के व्रत से जुड़ा हुआ है। शालिग्राम पत्थर को सालग्राम के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार, शिवलिंग और शालिग्राम को भगवान विष्णु और भगवान शिव के विग्रह रूप में पूजा जाता है। हिंदू धर्म में मूर्ति पूजन की प्रथा लेकिन इन मूर्तियों से पहले भगवान ब्रह्माजी को शंख, भगवान विष्णु को शालिग्राम और भगवान शिव को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता था।
शालिग्राम पत्थर की कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु के विग्रह, अनंत और निराकार स्वरूप को शालिग्राम कहा जाता है। जिस तरह भगवान शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है, उसी तरह भगवान विष्णु की पूजा शालिग्राम के रूप में की जाती है। पद्म पुराण में भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप के बारे में वर्णन मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु की भक्त देवी वृंदा नाम की शादी जलंधर नाम के राक्षस से हुई थी। जलंधर को भगवान शिव के अंश से उत्पन्न माना जाता है। राक्षसों के होने से वह देवताओं का विरोधी बन गया था और देवलोक पर अधिकार करके देवताओं को कष्ट दे रहा था। एक बार उसने अपने बल के अहंकार में देवी पार्वती को पत्नी बनाने की हठ ठान ली और कैलास पर्वत पर आक्रमण कर दिया। देवी वृंदा यह जानती थी की भगवान शिव से जलंधर जीत नहीं पाएगा इसलिए अपने पतिव्रत के बल पर वह संकल्प लेकर तपस्या करने बैठ गईं कि जब तक जलंधर युद्ध में जीतकर नहीं लौटेंगे तब तक वह अटल रहकर व्रत में लीन रहेंगी। ऐसे में देवताओं के लिए जलंधर को पराजित कर पाना कठिन हो गया था। तब भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा के पास पहुंच गए।
ऐसे बने भगवान विष्णु शालिग्राम
वृंदा ने जैसे ही अपने पति को देखा तो वह पूजा से उठ से गई और चरणों को स्पर्श कर लिया। इससे वृंदा का संकल्प टूट गया और युद्ध में जलंधर मारा गया। जलंधर का सिर देवताओं ने काट दिया और वृंदा के महल में पहुंचा दिया। वृंदा ने जब पति का कटा हुआ सिर देखा और सामने भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में पाया तो क्रोध से उबल पड़ीं। भगवान विष्णु भी अबाक होकर अपराधी के समान वृंदा के सामने अपने वास्तविक रूप में खड़े रहे। वृंदा ने क्रोध में आकर भगवान विष्णु को शाप दिया कि वह पत्थर के हो जाए। वृंदा के शाप से भगवान विष्णु काले रंग के शालिग्राम पत्थर बन गए। भगवान विष्णु के पत्थर हो जाने से चारों तरफ हाहाकार मच गया। सृष्टि को व्याकुल देखकर भगवान शिव सहित सभी देवी-देवताओं ने देवी वृंदा से शाप वापस लेने की विनती की। तब देवी वृंदा ने शाप वापस ले लिया और स्वयं को अग्नि को समर्पित करके भस्म बन गईं। और उसी भस्म से देवी वृंदा तुलसी रूप में प्रकट हुईं। भगवान विष्णु ने उस समय कहा कि आज से मेरा एक रूप शालिग्राम भी होगा। और देवी वृंदा तुलसी रूप में मेरे माथे पर शोभा पाएंगीं। इसलिए शालिग्राम को साक्षात विष्णु रूप माना जाता है। और शालिग्राम पत्थर से बनी मूर्ति में भगवान सदैव निवास करते हैं।
इसलिए गंडकी नदीं में निवास करते हैं शालिग्राम
देवी वृंदा के शाप से मुक्त होने पर भगवान विष्णु ने देवी वृंदा को यह भी वरदान दिया था कि तुम सदैव धरती पर गंडकी नदी के रूप में बहती रहोगी। तुम्हारा एक नाम नारायणी भी होगा। तुम्हारी जलधारा में ही मैं शालिग्राम शिला के रूप में निवास करूंगा क्योंकि तुम मेरी सदैव प्रिय रहोगी। भगवान विष्णु के द्वारा दिए गए इसी वरदान के कारण शालिग्राम शिला गंडकी नदी से ही मिलती है।