इस डर से रात में नहीं ठहरते यहां मंदिर में पुजारी, दिव्यआत्मा आती है करने पूजा

यूं तो हमारे देश में तमाम मंदिर हैं और उनके बारे में बहुत सारी कहानियां भी प्रचलित हैं। इन्‍हीं में से एक है विंध्‍याचल पर्वत की चोटी मैहर पर बसा मां शारदा का मंदिर भी एक है। यह एक शक्तिपीठ भी है। मां के इस मंदिर की कहानी अद्भुत और रोमांचक है।

कहते हैं न कि सच्‍चे मन से मांगो तो ईश्‍वर भी मिल जाता है। ऐसा ही हुआ था मां के भक्‍त आल्‍हा के साथ। ऐसी मान्‍यता है कि जब उसने मां का आर्शीवाद पाने के लिए कठोर तपस्‍या की तो दस वर्षों के बाद मातारानी उसपर प्रसन्‍न हुईं और दर्शन दिए। मान्‍यता है कि मातारानी ने आल्‍हा की भक्तिभाव से प्रसन्‍न होकर उसे चिरकाल तक भक्ति और अमरता का वरदान दिया। माना जाता है कि उसके बाद ही मां की प्रतिमा आल्‍हा को मिली और मां शारदा के इस मंदिर का निर्माण हुआ।

मंदिर के निर्माण से लेकर आज तक, कहा जाता है कि मां की पूजा- अर्चना सबसे पहले आल्‍हा ही करते आए हैं। कहते हैं कि जब प्रात:काल में मंदिर के पट खोले जाते हैं, तो वहां मां के चरणों में जल के साथ ही एक फूल चढ़ा हुआ मिलता है।

इस मंदिर में चढ़ता है लिंग का चढ़ावा

हालांकि आज तक कोई भी आल्‍हा को देख नहीं सका है। माता मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी रात में इस मंदिर में आल्हा को देखने के लिए ठहरा है उसकी मृत्यु हो गई। इस डर के कारण रात में इस मंदिर में कोई नहीं ठहरता है। मंदिर के पुजारी भी यहां रात में नहीं ठहरते हैं।

पुजारी बताते हैं मंदिर को खोलने का समय सुबह चार बजे का है। तभी मंदिर में प्रवेश किया जाता है। वह बताते हैं कि अक्‍सर ही मंदिर के दृश्‍य को देखकर लगता है जैसे कोई कपाट खुलने से पहले ही वहां से चला गया हो।

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मंदिर के शक्तिपीठ होने के बारे में कहा जाता है कि जब महादेव देवी सती के भस्‍मीभूत शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे। उस समय भगवान विष्‍णु ने मां के शरीर को अपने चक्र से खंड-खंड कर दिया था। कहा जाता है कि उस समय विंध्‍याचल की इस चोटी पर मां का हार गिरा था। यही वजह है कि इस जगह को मैहर यानी कि मां का हार का नाम दिया गया। इस तथ्‍य के बारे में हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी उल्‍लेख मिलता है।

मंदिर परिसर से थोड़ी दूर पर आल्‍हा उदल का ऊखाड़ा भी स्थित है। इसके अलावा वहां एक तालाब है। इसके बारे में मान्‍यता है कि दोनों भाई आल्‍हा और ऊदल इस सरोवर में स्‍नान किया करते थे। इसके बाद ही मां के दर्शनों के लिए जाते थे। मंदिर आने वाले श्रद्धालु इस स्‍थान के भी दर्शन करने आते हैं।