उन दिनों सरदार वल्लभ भाई पटेल के बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल असेंबली के अध्यक्ष थे। नारायण बाबू ने पब्लिक सेफ्टी बिल पर हिंदी में बोलने के लिए अध्यक्ष से अनुमति मांगी। अध्यक्ष उन्हें बिल पर बोलने की इजाजत देने के लिए तैयार थे, पर हिंदी भाषा में बोलने का उनका आग्रह स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने नारायण बाबू को अपने कक्ष में बुलाया और हिंदी में बोलने की जिद छोड़ने के लिए समझाने लगे। रोचक बात यह थी कि समझाने के क्रम में अध्यक्ष पटेल अंग्रेजी में बोल रहे थे और नारायण बाबू उसका जवाब हिंदी में दे रहे थे। इसी बातचीत में पटेल साहब ने पूछा, ‘आप मेरी अंग्रेजी में कही बातें कैसे समझ पा रहे हैं?’ नारायण बाबू शांत स्वर में बोले, ‘जैसे आप मेरी बात को समझ रहे हैं।‘
अब पटेल आवेश में आकर बोले, ‘आप यहां लड़ने आए हैं या मुझसे बहस करने?’ नारायण बाबू ने गंभीर मुद्रा में कहा, ‘अध्यक्ष महोदय, आया तो मैं यहां पर काम करने ही, पर आवश्यकता पड़ी तो बहस करने में भी पीछे नहीं हटूंगा।‘ आखिर अध्यक्ष पटेल ने नारायण बाबू को हिंदी में बोलने की इजाजत दे दी। इसी के साथ नारायण बाबू को भारतीय संसदीय इतिहास में हिंदी का प्रथम वक्ता होने का गौरव प्राप्त हुआ।– संकलन : दीनदयाल मुरारका