तेजसिंह ने भारतीय बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। उनकी नियुक्ति एक स्कूल में हो गई। उनके पढ़ाने के तरीके से बच्चे बहुत खुश थे। धीरे-धीरे उनके पढ़ाने के तरीके की चर्चा हर ओर होने लगी। यह खबर अंग्रेजों तक भी पहुंच गई। एक दिन जब वह सुबह उठकर हाथ मुंह धो रहे थे, उसी समय एक अंग्रेज सिपाही इन्हें पकड़ कर अपने साहब के पास ले गया। अंग्रेज साहब इन्हें देखते ही बोला, ‘आइए पंडितजी, सुना है आप बच्चों को बहुत अच्छी तरह से पढ़ाते हैं। कृपया मेरे बच्चों को भी घर पर आकर पढ़ा दिया करिए।’ अंग्रेज की बात सुनकर पंडित तेजसिंह स्पष्ट बोले, ‘क्षमा कीजिए, मैं केवल पाठशाला में पढ़ाता हूं। यदि आपके बच्चे वहां आ जाएंगे तो मैं उन्हें पढ़ा सकता हूं, लेकिन घर आकर बिल्कुल नहीं पढ़ा सकता।’
तेजसिंह के मना करने पर अंग्रेज बोला, ‘मैं तुम्हें इसके लिए ढेर सारा रुपया दूंगा। तुम्हारी जिंदगी संवर जाएंगी।’ पंडित तेजसिंह मुस्करा कर बोले, ‘ऐसी जिंदगी आपको मुबारक। हमें तो रूखी-सूखी मिल जाए तब भी जिंदगी मजे में चलती है। बस आप अंग्रेज यहां से निकल जाएं तो सोने पर सुहागा हो जाए।’ पंडित तेजप्रताप सिंह की बात सुनकर अंग्रेज का खून खौल उठा। लेकिन वह शिक्षक पंडित तेजसिंह को कुछ नहीं बोल पाया। – संकलन : रेनू सैनी