युगों युगांतर से जिस कैकेयी को यह कहकर कोसा जाता रहा है कि उन्हीं की जिद की वजह से भगवान राम को 12 साल के वनवास पर जाना पड़ा था और फिर उनके पुत्र भरत का राज्याभिषेक हुआ था। लेकिन यह पौराणिक कथा कुछ और ही कहती है और बताती है कि क्या थी वजह कि कैकेयी ने राजा दशरथ से पहले वर में राम को बनवास और दूसरे वर में भरत का राज्याभिषेक मांगा था। आइए जानते हैं क्या है यह कहानी…
किस पाप की क्या सजा मिलती है, जानें क्या लिखा है गरुड़ पुराण में
जब कैकेयी को आया यह सपना
अध्यात्म रामायण कहती है कि एक रात जब माता कैकेयी सोती हैं, तो उनके स्वप्न में विप्र, धेनु, सुर, संत सब एक साथ हाथ जोड़ के आते हैं और उनसे कहते हैं, कि हे माता कैकेयी, हम सब आपकी शरण में आए हैं। महाराजा दशरथ की बुद्धि जड़ हो गई है, तभी वो राम को राजा का पद दे रहे हैं। अगर प्रभु राजगद्दी पर बैठ गए तब उनके अवतार लेने का मूल कारण ही नष्ट हो जाएगा। माता संपूर्ण पृथ्वी पर सिर्फ आप में ही यह साहस है कि आप राम से जुड़े अपयश का विष पी सकती हैं।
कैकेयी ने राजा दशरथ से कही यह बात
कृपया प्रभु को जंगल भेज के सुलभ करिए, युगों-युगों से कई लोग उद्धार होने की प्रतीक्षा में हैं। त्रिलोक स्वामी का उद्देश्य भूलोक का राजा बनना नहीं है। अगर वनवास ना हुआ तो राम इस लोक के प्रभु नहीं बन पाएंगे। ये कहते-कहते देवता घुटनों पर आ गए। इस पर माता कैकेयी के आंखों से आंसू बहने लगे।
बिस्तर छोड़ते हुए इन मंत्रों का जप बेहद शुभ, देवी लक्ष्मी होती हैं मेहरबान
कैकेयी ने राम नहीं भरत का त्याग किया
माता कैकेयी बोलीं, ‘आने वाले युगों में लोग कहेंगे कि मैंने भरत के लिए राम को छोड़ दिया लेकिन असल में, मैं राम के लिए आज भरत का त्याग कर रही हूं। मुझे मालूम है। इस निर्णय के बाद भरत मुझे कभी स्वीकार नहीं करेगा।’
गुरु वशिष्ठ ने भरत से कही यह बात
रामचरित मानस में भी कई जगहों पर इसका संकेत मिलता है। जब गुरु वशिष्ठ दुःखी भरत से कहते हैं,
सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।।
हे भरत सुनो भविष्य बड़ा बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के ही हाथ में है, बीच में केवल माध्यम आते हैं।
हथेली में यहां हो गोल निशान तो व्यक्ति जीवन भर रहता है दुखी और परेशान
माता कैकेयी की वजह से बने भगवान राम ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’
प्रभु श्रीराम इस लीला को जानते थे इसलिए चित्रकूट में तीनों माताओं के आने पर प्रभु सबसे पहले माता कैकेयी के पास ही पहुंचकर प्रणाम करते हैं, क्योंकि उनको पैदा करने वाली भले ही कौशल्या जी थीं लेकिन उनको मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने वाली माता कैकेयी ही थीं।