संयोग की बात है। जब दोनों आगे बढ़े तो रास्ते में ईसा का एक अन्य शिष्य अपने पिता की लाश को दफनाता हुआ मिला। जैसे ही उसने अपने गुरु को देखा, दौड़ कर उनके करीब आया और उनके साथ चल पड़ा। ईसा ने उसे समझाते हुए कहा, ‘अरे! तुम साथ में क्यों चल रहे हो? जाओ अपना काम करो।’ शिष्य ने साथ चलने का हठ किया, तो ईसा बोले, ‘ऐसी कोई जल्दी नहीं है। तुम पिता की लाश को दफनाने के बाद अगले गांव आ जाना। मैं वहां कुछ समय रुकूंगा। फिर हमलोग साथ में चलेंगे।’ वह शिष्य चला गया।
लेकिन एक तरह की घटनाओं पर दो प्रकार के निर्णय! मैथ्यू को आश्चर्य हुआ। जब उससे नहीं रहा गया तो उसने गुरु से इसका कारण पूछ लिया। उसने कहा, ‘आपने मुझे पिता की लाश दफनाने का मौका नहीं दिया और उसे पिता की लाश दफनाकर आने को कहा।’ आपने एक ही प्रकार की घटना में दो प्रकार का निर्णय क्यों दिया?’ ईसा ने जवाब दिया, ‘जो राग में फंसा है उसे वैराग्य का उपदेश दिया। पर जो राग मुक्त है, उसे वैराग्य का उपदेश देने से कोई लाभ नहीं।’ गुरु की बात का मर्म समझ कर मैथ्यू नतमस्तक हो गया।– संकलन : दीनदयाल मुरारका