एकाग्रता की शक्ति से आप भी कर सकते हैं बड़े-बड़े कमाल

एकाग्रता की उपयोगिता और क्षमता से सभी परिचित हैं। साहित्यकार, कलाकार, वैज्ञानिक, अभिनेता, शिल्पी, व्यापारी अपनी कल्पना शक्ति को एकाग्र करके उससे संभावनाओं का विवेचन, विश्लेषण करते हैं और आवश्यक काट-छांट के उपरान्त किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, किसी निर्धारण को अपनाते हैं। प्राय: सभी बुद्धिजीवियों को यही करना पड़ता है। आर्किटेक्ट इमारतों के नक्शे बनाते हैं। वकील मुकदमों के चढ़ाव-उतारों को समझते हैं। व्यापारी कारखाने लगाने से पूर्व उसके संचालन में पड़ने वाली सभी आवश्यकताओं का लेखा-जोखा लेते हैं। वैज्ञानिकों, अविष्कारकों को तो अपने विषय में खाने-सोने की सुध-बुध तक छोड़कर तन्मय हो जाना पड़ता है। साहित्‍यकार अपनी रचनाओं का पूर्व ढांचा खड़ा करते हैं। यहां तक कि नट और सरकस दिखाने वाले तक एकाग्रता के आधार पर सफल प्रदर्शन करते पाए गए हैं।

एकाग्रता की शक्ति आसाधरण है। भाप चूल्हों से तेजी से बड़ी मात्रा में उड़ती रहती है, पर उसका थोड़ा अंश यदि किसी इंजन में सुनियोजित ढंग से भर दिया जाय तो उसके उपयोग से रेलगाड़ी दौड़ने लगती है। प्रेशर कुकर खाना पकाने लगते हैं। सूर्य की किरणें सर्वत्र बिखरी रहती हैं। उनसे गर्मी, रोशनी भर मिलती है, पर यदि थोडे़ क्षेत्र की धूप को भी एकत्रित किया जा सके तो आतिशी शीशे के केन्द्र बिन्दु पर चिंगारियां उड़ने लगती हैं। सौर चूल्हे, सौर हीटरों आदि का प्रचलन बढ़ जाता है। इन लाभदायक प्रयोगों में इतना भर ही होता है कि बिखराव को एकत्रीकरण के बंधन में बांधा जाता है। तिनके मिलकर मजबूत रस्सा बनाते हैं। धागे मिलकर कपड़ा बुनते हैं। यह एकीकरण का ही चमत्कार है। विचारों का बिखराव रोका जा सके और उन्हें दिशा विशेष में लगाया जाय तो वही लाभ मिलता है जो वर्षों के फसल गलाने वाले पानी को नालियों द्वारा निकाल कर एक बड़े तालाब में जमाकर उससे समय-समय पर काम में लिया जाता है।

द्रौपदी स्वयंवर की कथा प्रसिद्ध है। मत्स्य बेध करने वाले को विजेता घोषित किया जाना था। अनेक युवक आए और असफल होते गए। अर्जुन था जिसे एकाग्रता सिद्ध थी। गुरु के पूछने पर उसने बताया कि उसे मछली की आंख दिखने के अतिरिक्त उसके शरीर और कोई अंश दृष्टिगोचर नहीं होता। इसी अभ्यास के आधार पर उसने लक्ष्य बेधा और द्रौपदी की विजय माला पहनने का सौभाग्य प्राप्त किया। बैंकों के कैशियर, फर्मों के मुनीम लम्बा हिसाब जमाते हैं और काम तब बन्द करते हैं जब मिलान ठीक बैठ जाता है। यदि एकाग्रता न हो तो हिसाब में बार-बार भूल पड़े, ढेरों समय खराब हो और अयोग्यता साबित हो। यही बात प्रत्येक काम की सफलता का आधार बनती है। -पं. श्रीराम शर्मा आचार्य