अमेरिका में रहने वाली नन्ही एल्कॉट की बीमार मां और छोटी बहनें रोटी के लिए संघर्ष करती रहती थीं। बीमार मां और बहनों को देखकर एल्कॉट ने रुपए कमाने के लिए लिखना शुरू किया। उन्होंने अपनी कहानियां संपादकों को भेजनी शुरू कीं, पर उनकी सभी कहानियां खेद सहित वापस लौट आती थीं। यह देखकर उनकी बहनें कहतीं, ‘दीदी, लिखने से तुम कभी रोटी नहीं जुटा पाओगी। इससे अच्छा है कि तुम अपना ध्यान दूसरे कामों में लगाओ।’ एल्कॉट बहनों से कहतीं, ‘तुम चिंता मत करो, हिम्मत हारने से कभी सफलता नहीं मिलती। शुरू-शुरू में असफलता मिलती है, लेकिन जुटकर मेहनत करो तो व्यक्ति सफल हो जाता है।
एल्कॉट आम लड़कियों से अलग थीं। वह टॉमबॉय की तरह रहती थीं। धीरे-धीरे उसकी कुछ कहानियां प्रकाशित होने लगीं। एक दिन एल्कॉट ने एक उपन्यास लिखना शुरू किया। उन्होंने उपन्यास को नाम दिया ‘लिटिल विमेन’ और मुख्य चरित्र के रूप में टॉमबॉय नामक लड़की को ही रचा। हालांकि उन्हें पूरी उम्मीद थी कि संपादक उसके इस उपन्यास को नहीं छापेंगे, क्योंकि वे उससे लड़कियों की कहानियां लिखने को बोलते थे। उपन्यास पूरा करने के बाद एल्कॉट उसे देने एक संपादक के पास गईं और बोलीं, ‘अगर आपको ठीक लगे तो इसे छाप देना, नहीं तो मुझे वापस कर देना।’
संपादक ने उपन्यास को पढ़ कर प्रकाशित करने का निर्णय लिया। जैसे ही वह उपन्यास प्रकाशित होकर आया, वैसे ही वह बाजार में बेस्टसेलर बन गया। अधिकतर लड़कियों को ‘लिटिल विमेन’ का कथानक बेहद पसंद आया। कई लड़कियां तो खुद को टॉमबॉय ही समझने लगीं और वैसे ही कपड़े भी पहनतीं। इस तरह कुछ ही समय बाद एल्कॉट को धन व यश, दोनों मिल गए। एल्कॉट की बहनें भी उनकी इस बात से सहमत हो गईं कि मन लगाकर काम किया जाए, तो सफलता प्राप्त होती ही है।
संकलन : रेनू सैनी