ऐसा क्या हुआ देवी लक्ष्मी ने रुला दिया भगवान विष्णु को

जान‍िए हर‍ि और माता लक्ष्‍मी की यह अद्भुत कथा

कहते हैं कि जिस भी घर में भगवान विष्‍णु और माता लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है वहां सुख-शांति का वास होता है। दांपत्‍य जीवन भी सुखमय होता है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि इक बार ऐसा भी हुआ कि श्री हर‍ि को भी माता लक्ष्‍मी की वजह से रोना पड़ा। आइए जानते हैं क्‍या है पूरी कहानी?

जब श्री हर‍ि के संग होने की बात कही देवी लक्ष्‍मी ने

जब श्री हर‍ि के संग होने की बात कही देवी लक्ष्‍मी ने

पौराणिक कथाओं में जिक्र मिलता है कि एक बार श्री हर‍ि धरती पर भ्रमण के लिए जा रहे थे। तभी देवी लक्ष्‍मी ने उनके साथ चलने की अनुमति मांगी। कई बार कहने पर भगवान विष्‍णु ने कहा कि वह साथ चल सकती हैं लेकिन उन्‍हें एक शर्त माननी होगी। उन्‍होंने कहा कि धरती पर कैसी भी स्थिति आए लेकिन उन्‍हें उत्‍तर द‍िशा की ओर नहीं देखना है। देवी लक्ष्‍मी भी भगवान की शर्त मान लेती हैं और साथ चल देती हैं।

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इस तरह खुद को रोक न सके भगवान और रो पड़े

इस तरह खुद को रोक न सके भगवान और रो पड़े

कथा मिलती है कि जब श्री विष्‍णु और माता लक्ष्‍मी पर भ्रमण कर रहे थे। तभी देवी की नजर उत्‍तर द‍िशा की ओर पड़ी। उस ओर इतनी हरियाली थी कि वह खुद को रोक न सकीं और सामने द‍िख रहे बगीचे में चली गईं। इसके बाद उन्‍होंने उस बाग से एक पुष्‍प तोड़ लिया और भगवान विष्‍णु के पास वापस आईं। उन्‍हें देखते ही श्री हरि रो पड़े। तभी माता लक्ष्‍मी को उनकी शर्त याद आई। तब भगवान विष्‍णु ने कहा कि बिना किसी से पूछे उसकी किसी भी वस्‍तु को छूना अपराध है।

लक्ष्‍मीजी को इस वजह से बनना पड़ा दासी

लक्ष्‍मीजी को इस वजह से बनना पड़ा दासी

देवी लक्ष्‍मी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्‍होंने भगवान से क्षमा मांगी। लेकिन श्रीहरि ने कहा कि इस गलती की माफी उस बगीचे का माली ही दे सकता है। उन्‍होंने कहा कि अब उन्‍हें उस माली के घर में दासी बनकर रहना होगा। देवी लक्ष्‍मी ने उसी क्षण गरीब औरत का रूप धारण किया और सीधे उस माली के घर पहुंच गईं। माली ने उनसे कभी खेत में काम करवाया, कभी बगीचे में तो कभी घर में। लेकिन एक द‍िन उसे पता चला कि वह दासी कोई और नहीं माता लक्ष्‍मी हैं। तो वह रो पड़ा।

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ऐसे दासी बनीं मां लक्ष्‍मी ने भर दी माली की झोली

ऐसे दासी बनीं मां लक्ष्‍मी ने भर दी माली की झोली

कथा के अनुसार माली ने मां लक्ष्‍मी से क्षमा-याचना की और कहा कि जो कुछ उसने उनसे करवाया वह सब अज्ञानतावश था। इसके लिए वह उसे माफ कर दें। मां लक्ष्‍मी ने मुस्‍कुराते हुए कहा कि जो भी वह नियति थी। इसमें उसका कोई दोष नहीं है। लेकिन जिस तरह उसने मां को अपने पर‍िवार का सदस्‍य समझा। उसके लिए वह उसे आजीवन सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं। देवी लक्ष्‍मी ने कहा कि माली और उसके पर‍िवार के सदस्‍यों को जीवन में किसी भी तरह का कष्‍ट नहीं भोगना पड़ेगा। इतना कहकर देवी अंर्तध्‍यान होकर विष्‍णु लोक वापस चली गईं।

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