हजरत उमर कुरैश मोहम्मद साहब के खिलाफ थे। जब उन्हें पता चला कि उनकी बहन फातिमा और उसके पति ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया है, तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया और वे उनके घर जा पहुंचे। उस समय फातिमा कुरान पढ़ रही थी। आहट हुई, तो उसने झटपट कुरान बंद तो की, लेकिन आयतों की आवाज उमर के कानों में पड़ चुकी थी। उन्होंने पूछा, ‘क्या पढ़ रही थी?’ बहन ने पूछा, ‘क्या बात है तुम इतने गुस्से में क्यों हो?’ ‘मैं जानता हूं तुम वह ग्रंथ पढ़ रही थी।’ उमर ने कहा, ‘मुझे मालूम हो गया है कि तुम दोनों मुसलमान हो गए हो।’
यह कहकर वे बहनोई को मारने के लिए दौड़े, लेकिन बहन बीच में आ गई और डंडे का वार उसके सिर पर जा पड़ा। बहन के सिर पर डंडा पड़ना था कि उसके सिर से खून निकलने लगा। इसके बावजूद वह नहीं डरी और बोली, ‘उमर, मुझे और मार, जिससे तेरी मंशा पूरी हो सके।’ उमर ने जब देखा कि बहन के स्वर में उसके प्रति जरा भी नफरत नहीं है तो वे चौंके। उनका हाथ रुक गया। फातिमा बोलीं, ‘उमर सुन, हम सबका खुदा एक ही है। उसे कोई किसी भी नाम से क्यों न पुकारे, हम सब उसी की संतान हैं। हमारे मोहम्मद साहब खुदा के रसूल हैं और हम उन पर न्यौछावर हैं। इसलिए तू मारना चाहता है, तो हमें मार डाल।’
यह देख उमर को लगा कि इस्लाम की ही ताकत से उनकी बहन मौत को भी तुच्छ मान रही है। उनके दिल में बहन और बहनोई के खिलाफ उमड़ा गुस्सा पिघलने लगा। रूंधे गले से उमर अपनी बहन से बोले, ‘बहन, तुम जो पढ़ रही थी वह मुझे भी सुनाओ।’ फातिमा ने कुरान पढ़ना शुरू किया और उमर एकाग्र होकर सुनने लगे। बोल उठे, ‘अल्लाह एक है। मोहम्मद उसका रसूल है।’ फिर बहन के साथ वे मोहम्मद साहब के पास गए और इस्लाम धर्म स्वीकार कर उनके शिष्य हो गए।
संकलन : राधा नाचीज