कभी इस मंदिर में डाकू आकर करते थे पूजा, ऐसी है मंदिर की मान्यता

मंदिरों की स्‍थापना में देवी-देवताओं या फिर स्‍वप्‍न में किसी भक्‍त को दर्शन देकर मंदिर की स्‍थापना की कहानियां आपने जरूर सुनी और पढ़ी होंगी। लेकिन हम आपको ऐसे मंदिर की कहानी बताने जा रहे हैं, जहां पर देवी की पूजा सबसे पहले डाकुओं ने ही शुरू की थी। यही नहीं मंदिर की प्रथा भी अनोखी है। यहां पर देवी मां को किसी तरह की नारियल-चुनरी या फिर पेड़े का प्रसाद नहीं चढ़ाते बल्कि हथकड़ी और बेड़ियां चढ़ाकर मां को प्रसन्‍न कर आर्शीवाद लिया जाता है। कहते हैं कि इस मंदिर से कभी कोई निराश नहीं लौटा।

राजस्‍थान के प्रतापगढ़ में है मां का यह अद्भुत मंदिर

हथकड़ी और बेड़‍ियों का यह अनोखा मंदिर राजस्‍थान के प्रतापगढ़ जिले की जोलर ग्राम पंचायत में स्‍थापित है। इस मंदिर को ‘दिवाक माता’ के मंदिर के नाम से जाना जाता है।

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ऐसे हुई स्‍थापना

मंदिर की स्‍थापना के बारे में कहानी मिलती है कि सालों पहले यहां दूर-दूर तक केवल जंगल हुआ करता था। इन्‍हीं जंगलों में डाकू रहा करते थे और देवी मां की पूजा करते थे। कहा जाता है कि वह मां से यह प्रार्थना करते थे कि अगर चोरी करते वक्‍त पकड़े नहीं गए या पकड़े गए तो कुछ ऐसा हो कि वह जेल से भाग निकले। साथ ही यह भी प्रार्थना करते थे कि यह मन्‍नत पूरी होगी तो वह मां को हथकड़ी चढ़ाएंगे। इस तरह उनकी मन्‍नतें पूरी होती रहीं और मंदिर में हथकड़ी और बेड़ियां चढ़ने की पंरपरा शुरू हो गई।

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200 साल पुराना है त्रिशूल

जोलर ग्राम स्थित मां के इन अनोखे मंदिर परिसर में एक त्रिशूल है जो कि 200 साल पुराना है। दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु इसी त्रिशूल पर हथकड़ी और बेड़‍ियां चढ़ाते हैं। बताते हैं कि इस त्रिशूल पर चढ़ी हथकड़‍ियां और बेड़‍ियां 150 सालों से भी पुरानी है।

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ये मन्‍नतें लेकर आते हैं भक्‍त

कहते हैं कि जिनके परिजन जेल में हैं या फिर किसी कानूनी कार्रवाई में फंसे हैं, वह यहां आकर हथकड़ी और बेड़‍ियां चढ़ाते हैं। साथ ही देवी मां से अपने परिजनों की रिहाई और कानूनी कार्रवाई से मुक्ति की अर्जी लगाते हैं। मंदिर आने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि यहां आने वाले किसी भी भक्‍त की झोली कभी खाली नहीं रही।

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