कलाओं के ज्ञानी होने के बाद भी इसलिए भगवान बुद्ध ने ली परीक्षा, फिर हुआ चमत्कार

युवक अंकमाल भगवान बुद्ध के सामने उपस्थित हुआ और बोला, ‘भगवन! मेरी इच्छा है कि मैं संसार की कुछ सेवा करूं। आप मुझे कहीं भेज दें, ताकि मैं लोगों को धर्म का रास्ता दिखला सकूं।’ बुद्ध हंसकर बोले, ‘तात! संसार को कुछ देने से पहले, अपने पास कुछ होना आवश्यक है। जाओ पहले अपनी योग्यता बढ़ाओ, फिर संसार की सेवा करना।’ अंकमाल वहां से चल पड़ा। बाण बनाने से लेकर चित्रकला तक जितनी भी कलाएं हो सकती थीं, उन सबका उसने कठोर अभ्यास किया। उसकी ख्याति कलाओं के ज्ञाता के के रूप में उस पूरे क्षेत्र में फैल गई।

अंकमाल लौटा और तथागत की सेवा में जा उपस्थित हुआ। अपनी योग्यता का बखान करते हुए उसने भगवान बुद्ध से कहा, ‘भगवन! अब मैं संसार के प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ सिखा सकता हूं। अब मैं कलाओं का पंडित हूं।’ भगवान बुद्ध मुस्कराए और बोले, ‘अभी तो तुम कलाएं सीख कर आए हो, परीक्षा दे दो, तब उन पर अभिमान करना।’ अगले दिन भगवान बुद्ध एक साधारण नागरिक का वेश धर अंकमाल के पास गए और उसे अकारण खरी-खोटी सुनाने लगे। अंकमाल क्रुद्ध होकर उन्हें मारने दौड़ा तो बुद्ध वहां से मुस्कराते हुए लौट गए।

उसी दिन मध्याह्न में भगवान बुद्ध फिर वेश बदलकर अंकमाल के पास पहुंचे और बोले, ‘आचार्य, आपको सम्राट हर्ष ने मंत्रिपद देने की इच्छा जताई है। क्या आप उसे स्वीकार करेंगे?’ अंकमाल को लोभ आ गया। उसने कहा, ‘हां-हां अभी चलो।’ भगवान बुद्ध फिर मुस्करा दिए और चुपचाप वापस लौट गए। अंकमाल हैरान था, ‘आखिर बात क्या है?’ सायंकाल अंकमाल को भगवान बुद्ध ने बुलाया और पूछा, ‘वत्स! क्या तुमने काम, क्रोध और लोभ पर विजय की विद्या भी सीखी है?’ आश्चर्यचकित अंकमाल कुछ न कह सका। फिर भगवान बुद्ध ने अंकमाल को दिनभर की सारी घटनाएं याद दिलाईं। उसने लज्जा से सिर झुका लिया और आत्म-विजय की साधना में जुट गया। – संकलन: आर.डी. अग्रवाल ‘प्रेमी’