कुंभ उन तमाम भारतीय पर्वों में से एक है जिसका हिस्सा बनने के लिए चारों दिशाओं से भीड़ उमड़ पड़ती है। इस उत्सव से जुड़ी आस्था इतनी प्रबल है कि सात समंदर पार रहने वाले भी इसके मोह से बच नहीं सके और इस तरह पूरी दुनिया से लोग संगम तट पर आकर तन-मन-आत्मा पवित्र करने वाली एक डुबकी जरूर लगाना चाहते हैं। कुंभ मेले के पहले दिन मकर संक्रांति पर हमें कुछ ऐसे ही विदेशी मेहमान मिले। इनमें से एक थीं सोफी जो बेल्जियम में मेडिटेशन सिखाती हैं। उन्होंने कहा, ‘संगम के हिलोरें लेते जल में स्नान करने के लिए आई इस भीड़ को देखकर मैं हैरान हूं। मेरी एक रिश्तेदार को एक ट्रैवल एजेंट ने कुंभ के बारे में बताया था। मेरी रिश्तेदार फोटोग्राफर है उन्हें यहां आने का ख्याल बहुत अच्छा लगा, उन्होंने मुझसे भी आने के बारे में पूछा। मैंने अपना बैग पैक किया और चल पड़ी, यहां आकर जनता की आस्था देखकर मैं उसकी कायल हो गई हूं।’
सोफी की ही तरह पीठ पर बैग लादे, कमर में कैमरा बांधे विदेशी सैलानियों की पूरी फौज कुंभ मेला क्षेत्र में दिखाई देती है। ये टूरिस्ट कुंभ के उत्साह, उछाह और उमंग का हिस्सा भी बनते हैं और इन पलों को कैमरों में कैद करके उन्हें अपने देश ले जाते हैं ताकि जो यहां नहीं आ सके वे भी कुंभ में डुबकी लगा सकें। कैमरों में गंगाजल ले जाने का उनका यह अपना तरीका है।
अमेरिका के बोस्टन से आई पैरी सिमोन एक आर्टिस्ट हैं। उनका कहना था, ‘मेरे पति ने इंटरनेट पर कुंभ के बारे में पढ़ा था। हमने यहां आने की ट्रिप प्लॉन की। सच कहूं तो यहां आना और इतनी बड़ी भीड़ का हिस्सा बनना अद्भुत और बेजोड़ अनुभव रहा है।’ नागा साधुओं को देखना तो वाकई हैरान करने वाला रहा। सिमोन ने आस्था के सूत्र में पिरोई इतनी बड़ी जनसंख्या को एक साथ देखा पहली बार देखा है, लेकिन मेला प्रशासन ने जिस तरह से पूरी व्यवस्था और बंदोबस्त को संभाला है उससे वह भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं ।
यहां संगम तट पर एक तरफ थे भाषा, संस्कृति, धर्म और रीतिरिवाजों के अंतर और दूसरी तरफ थी आस्था जो लाखों-करोड़ों दिलों में एक साथ, एक जैसी धड़क रही थी । न्यू जर्सी से आईं स्टूडेंट जेनी जॉनसन बोलीं, ‘मैं यहां आकर खुद को चेतना के अलग स्तर पर पा रही हूं। एक अजीब सा आनंद है जो मेरे पूरे अस्तित्व पर छाया है, जिसके अलग-अलग रंग हैं। मैं यहां किसी विशेष आध्यात्मिक जिज्ञासा को लेकर नहीं आई थी। इसके बावजूद मैं अपने दिल में असीम शांति अनुभव कर रही हूं। यहां यह अहम नहीं है कि हर श्रद्धालु गंगा-यमुना के पवित्र जल में डुबकी लगाए ही पर इसके बावजूद हर एक चेहरे पर जो पारस्परिक स्नेह और करुणा झलक रही है वह कहीं और दुर्लभ है ।
मन में एक सवाल उठता है कि कर्मबंधन और पाप-पुण्य जैसी अवधारणाओं से अनजान इन विदेशियों को क्या कोई दिव्य ताकत हजारों मील यहां खींच लाई है। इस सवाल का जवाब भले ही किसी के पास ना हो लेकिन यह तो स्पष्ट है कि पूरी मानवता अमृत कुंभ से छलकी बूंदों को अपने आंचल में समेटने के लिए एकजुट हुई है। न्यू जीलैंड के शहर ऑकलैंड के जेरेमी मार्शल एक हार्डवेयर इंजीनियर हैं जो दिल्ली में अपने दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए आए थे। उनके दोस्त के ससुराल वाले कुंभ में शामिल होने के लिए इलाहाबाद आए तो संग-संग जेरेमी भी चले आए । क्यों ! यह पूछने पर जेरेमी कहते हैं, ‘ये लोग कुंभ स्नान करके पाप धोने की बातें कर रहे थे, सुनकर जिज्ञासा हुई कि यह क्या चीज है। यहां आकर घाट पर मटमैला पानी देखा तो उसमें उतरने की हिम्मत नहीं हुई लेकिन जब मैंने अपनी गर्लफ्रेंड से बात की तो मन बदला। जैसे-तैसे जल में उतरा और आप विश्वास नहीं करेंगे कि फिर मेरी झिझक ना जाने कहां चली गई। स्नान के बाद मैंने खुद कहीं ज्यादा पवित्र और शुद्ध महसूस किया।’
कबीर ने कहा है, पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया ना कोय… हमार अनुभव ही हमारे किताबी ज्ञान को व्यापक बनाता है। नाइजीरिया से आए एक लेक्चरर कपल को भी कुछ ऐसा ही लगा। वे बोले, ‘इतने सारे अखाड़ों ने हमें हैरान कर दिया… कड़कड़ाती सर्दी में सूरज उगने से पहले ही स्नान करने के लिए बच्चों की तरह उत्साहित साधु, संतों को देखना अद्भुत था। इसी तरह छोटे-छोटे बच्चे जो कंपकंपाते होठों से अपनी प्रार्थनाएं दुहराते हुए डुबकियां लगा रहे थे, इतनी बड़ी तादाद में उमड़े श्रद्धालुओं के लिए इतने बेहतरीन बंदोबस्त को देखने का भी हमारा यह पहला अनुभव था।’
दुनिया का चक्कर लगा चुकी एंजी का कहना था, ‘मैं यहां आकर इतनी उत्साहित हूं कि कुछ कहते नहीं बनता। मैंने बहुत यात्राएं की हैं, सफरनामे लिखे हैं, मैं ऐसी वर्कशॉप कराती हूं जिनमें स्टूडेंट्स को बताया जाता है कि विदेश जाने पर किस तरह से सुरक्षित यात्रा करें। कुंभ यात्रा से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है। प्रशासन ने इतनी बड़ी भीड़ को मैनेज करने की जो कोशिश की है वह काबिले तारीफ है। यहां का खाना भी बहुत स्वादिष्ट है। मैं यहां 15 फरवरी तक रुकूंगी, तब तक हर सुबह मैं अपने टेंट में योगा वर्कशॉप करा रही हूं।’