क्‍या आप जानते हैं जानते हैं गायन से पहले खानसामा थे पंडित भीमसेन जोशी

एक बार बांग्ला फिल्मों के अपने समय के सबसे बड़े चरित्र अभिनेता पहाड़ी सान्याल के घर एक नवयुवक आया। उसने बताया कि वह काम की तलाश में दक्षिण भारत से कलकत्ता आया है। पहाड़ी सान्याल ने उससे पूछा कि वह क्या कर सकता है? युवक बोला कि वह गा सकता है। सान्याल ने युवक को गाने के लिए कहा। युवक ने जब गाया तो सान्याल महाशय चकित रह गए। इतनी कम उम्र में ऐसा ध्रुपद गायन वे पहली बार सुन रहे थे। वे स्वयं ध्रुपद के दीवाने थे और इसी दीवानगी के पीछे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ पहले संगीत और फिर फिल्मों में आ गए।

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उस वक्त उन्होंने युवक की मदद करने के लिए उसे बतौर खानसामा रख लिया। कुछ समय बाद वह खानसामा काम छोड़कर चला गया। बहुत सालों बाद कोलकाता में ध्रुपद संगीत पर बड़े कार्यक्रम का आयोजन हुआ। उस कार्यक्रम में पहाड़ी सान्याल भी आमंत्रित थे। कार्यक्रम में अलौकिक ध्रुपद सुनने के बाद उन्होंने उसके गायक से मिलने का तय किया। कार्यक्रम खत्म होते ही वे उस गायक से अपने बारे में बताते हुए उसका भी परिचय पूछा। उस गायक ने पहाड़ी सान्याल को बताया कि कलकत्ता में वे दूसरी बार इस कार्यक्रम में आए हैं।

गायक ने बताया कि जब वे पहली बार आए थे, तो आपके ही घर में कुछ दिन खानसामा थे। यह सुनते ही पहाड़ी सान्याल लज्जित हो गए, क्योंकि जिस गायक से वे रूबरू थे, वे थे पंडित भीमसेन जोशी। पंडित जी के माता-पिता चाहते थे कि वे पढ़-लिखकर कोई बड़ी नौकरी करें, पर उनका मन संगीत में ही लगता। इसलिए संगीत की प्रारंभिक शिक्षा के बाद घर छोड़कर अपनी संगीत साधना पूरी करने के लिए गुरु की खोज में कई जगहों पर भटकने के दौर में वे लखनऊ और फिर कलकत्ता गए थे।

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संकलन : सुलोचना वर्मा