क्‍या वजह थी कि राममनोहर लोहिया को शिक्षा ग्रहण करने के लिए जर्मन भाषा सीखनी पड़ी?

राममनोहर लोहिया अर्थशास्त्र की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अगस्त, 1929 में बर्लिन गए थे। उन दिनों बर्लिन विश्वविद्यालय के प्रफेसर सोम्बर्ट महान अर्थशास्त्री के रूप में पूरी दुनिया में प्रसिद्ध थे। लोहिया जी उन्हीं से शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। उन्होंने प्रफेसर से मुलाकात की और अंग्रेजी में उनके सामने अपनी इच्छा व्यक्त की। परंतु प्रफेसर अपनी मातृभाषा जर्मन में ही शिक्षा देते थे। लोहिया जी को जर्मन भाषा नहीं आती थी। जब प्रफेसर को यह बात मालूम हुई तो वह बोले, ‘मैं आपको शिक्षा नहीं दे सकता क्योंकि मैं केवल जर्मन माध्यम में ही पढ़ाता हूं।’ प्रफेसर की बात सुनकर लोहिया जी उदास हो गए और भारत लौट गए।

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लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। भारत लौटने के बाद उन्होंने पूरी लगन से जर्मन भाषा सीखनी शुरू कर दी। यह देखकर उनके मित्र कहते, ‘क्यों इतनी मेहनत कर रहे हो? किसी और प्रफेसर से अर्थशास्त्र की शिक्षा ले लो।’ इस पर लोहिया जी मुस्करा कर कहते, ‘व्यक्ति को हमेशा सर्वश्रेष्ठ तरीके से कार्य को करने की कोशिश करनी चाहिए और मैं वही कर रहा हूं।’ कुछ समय बाद उनकी मेहनत लगन रंग लाई। वह फर्राटेदार जर्मन भाषा बोलने लगे। जर्मन पढ़ना और लिखना भी वह सीख चुके थे। इसके बाद वह प्रफेसर सोम्बर्ट के पास पहुंचे। वहां उन्होंने उनसे जर्मन भाषा में बात की। यह देखकर प्रफेसर सोम्बर्ट भी दंग रह गए।

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प्रफेसर सोम्बर्ट ने लोहिया जी से कहा, ‘वाकई आपने कमाल कर दिया। इतने कम समय में जर्मन भाषा पर इतनी मजबूत पकड़ बना लेना बताता है कि आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। इससे यह सिद्ध हो गया कि आपके प्रयास के आगे बड़ी से बड़ी सफलता आपकी दासी बन सकती है।’ लोहिया जी ने प्रफेसर के इन शब्दों को सार्थक कर दिखाया। आज पूरा विश्व राममनोहर लोहिया जी को एक प्रखर व्यक्तित्व के रूप में याद करता है।

संकलन : रेनू सैनी