जहां तक हमारी बुद्धि काम करती है, हम किसी घटना के कारणों को मालूम कर लेते हैं, उसी के आगे ईश्वर की माया शुरु हो जाती है। संसार में होने वाले समस्त कार्य ईश्वर की मर्जी से सम्पन्न होते हैं। दुनिया भर में असंख्य लोग आंख बंद करके जिस पर विश्वास करते हैं, वह है ईश्वर। आज तक ईश्वर को किसी ने नहीं देखा है, केवल उसके स्वरूप की अनेक कल्पनाऐं की गई हैं। ईश्वरीय सत्ता पर मानव के अगाध विश्वास का आधार है, ईश्वर की अपार शक्ति जिसके माध्यम से सब कुछ सम्भव है। तुलसीदास जी ने लिखा है,
तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला।।
ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता।।
हे तात! राम मनुष्यों के ही राजा नहीं हैं। वे समस्त लोकों के स्वामी और काल के भी काल हैं। वे (संपूर्ण ऐश्वर्य, यश, श्री, धर्म, वैराग्य एवं ज्ञान के भंडार) भगवान हैं, वे निरामय (विकाररहित), अजन्मे, व्यापक, अजेय, अनादि और अनंत ब्रह्म हैं।
आत्मा का अस्तित्व है, तो परमात्मा भी निश्चित है – आत्मा और परमात्मा को समझाने के लिए अक्सर लोग दोनों की तुलना लोटे के जल और समुद्र के जल से करते हैं। लोटे और समुद्र के जल में मात्रा का चाहें जो भी फर्क हो, पर तत्व की दृष्टि से दोनों एक ही हैं। दोनों में हाइड्रोजन और ऑक्सीन के एक निश्चित अनुपात में मिश्रण है, इसलिए दोनों के गुण-धर्म भी एक हैं। शास्त्रों में मृत्यु के बाद आत्मा द्वारा ही नया शरीर धारण करने का उल्लेख किया गया है। आत्मा नया शरीर धारण करती है, तो इसका मतलब कि आत्मा का अस्तित्व है, और जब आत्मा का अस्तित्व है, तो परमात्मा भी निश्चित है।