जानिए खंडित मूर्ति की पूजा करने के पीछे का रहस्य
खंडित मूर्ति की पूजा करने के पीछे एक कहानी है। एक समय मंदिर पूरी तरह बनकर तैयार हो गया था। जन्माष्टमी के अगले दिन राधा-गोविंद मंदिर में नंदोत्सव की खूब धूम रही। उस दौरान दोपहर में जब भगवान श्री कृष्ण को आरती और भोग के बाद उनके शयनकक्ष में ले जाया जा रहा था, तभी मूर्ति जमीन पर गिर गई। जिससे प्रतिमा का पैर टूट गया। ये सभी के लिए अशुभ था। सभी भक्त क्रोधित हो गए और कहने लगे कि हमने ऐसा क्या किया है कि श्री कृष्ण हमसे नाराज हो गए। सभी भक्तों को लगा कि कोई अशुभ घटना घटने वाली है।
उस दौरान रानी रासमणि भी बहुत परेशान थी। उन्होंने सभी ब्राह्मणों को बुलाया और उनसे विचार-विमर्श किया कि इस टूटी हुई मूर्ति का क्या किया जाए। तब ब्राह्मणों ने सुझाव दिया कि इस मूर्ति को जल में प्रवाहित कर दिया जाए और इसके स्थान पर नई मूर्ति स्थापित कर दी जाए, लेकिन रासमणि को ब्राह्मणों का यह सुझाव पसंद नहीं आया। फिर वह रामकृष्ण परमहंस के पास गईं, जिनके प्रति उनकी गहरी श्रद्धा थी। रामकृष्ण परमहंस ने उनसे जो कुछ भी कहा वह बहुत अद्भुत था।
भक्त रामकृष्ण ने कहा कि जब परिवार का कोई सदस्य विकलांग हो जाता है या माता-पिता में से कोई एक घायल हो जाता है, तो क्या उन्हें त्याग दिया जाता है और एक नया सदस्य लाया जाता है? नहीं, बल्कि हम उनकी सेवा करते हैं। तब रासमणि को परमहंस का यह सुझाव बहुत पसंद आया और फिर उन्होंने निर्णय लिया कि श्री कृष्ण की इस मूर्ति की मंदिर में पूजा की जाएगी और इसकी देखभाल भी की जाएगी।