खाटू श्याम के दरबार में लगा मेला, जानें आमलकी एकादशी पर क्यों होती है खास पूजा

कहते हैं कि इस दर का नाम लेकर कहीं से कभी भी कुछ भी मांगने वाले की झोली कभी खाली नहीं रहती। बाबा अपने भक्‍तों की सारी मुरादें पूरी करते हैं। यही वजह है कि होली के पहले पड़ने वाली आमलकी एकादशी पर यहां भक्‍तों का हुजूम लग जाता है। हम बात कर रहे हैं राजस्‍थान के सीकर में स्थित खाटू धाम की। यहां आमलकी एकादशी पर मेला लगता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। रंगों और फूलों से सजा बाबा खाटू का दरबार इस एकादशी पर बहुत ही मनोरम लगता है। आइए खाटू बाबा के दरबार के बारे में और भी रोचक बातें जानें।

कहा जाता है जब लाक्षागृह की घटना से बचने के लिए पांडव वन में भटक रहे थे। तभी उनकी मुलाकात हिडिंबा नाम की राक्षसी से हुई। हिडिंबा भीम पर मोहित थी, ऐसे में माता कुंती की हां के बाद दोनों का विवाह हुआ और उनके पुत्र घटोत्‍कच का जन्‍म हुआ। बाबा खाटू श्‍याम भीम के इन्‍हीं पुत्र घटोत्‍कच के पुत्र थे। उनका नाम बर्बरीक हुआ।

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कहा जाता है कि बर्बरीक देवी का उपासक था और उन्‍हें देवी से तीन दिव्‍य बाण प्राप्‍त हुए थे। वह लक्ष्‍य को भेदकर लौट आते थे। इससे बर्बरीक को कोई भी हरा नहीं पाता था। बर्बरीक को लेकर कही गई कहानियों में यह भी कथा आती है कि जब महाभारत का युद्ध हो रहा था तो बर्बरीक अपने एक ही बाण से युद्ध को समाप्‍त करने की मंशा से युद्धस्‍थल जा रहा था। तभी मार्ग में श्री कृष्‍ण ने बर्बरीक के सामने गरीब ब्राह्मण बनकर उससे दान में उसका शीश मांग लिया क्‍यूंकि प्रभु जानते थे कि बर्बरीक एक ही बाण से युद्ध समाप्‍त कर सकता है। वह भी यह बात जान चुका था कि यह गरीब साधारण ब्राह्मण तो नहीं है।

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बर्बरीक ने प्रभु से वास्‍तविक रूप प्रकट करने का अनुरोध किया। इस पर जब उसे कन्‍हैया के दर्शन हुए तो सहर्ष ही उसने अपना शीश दान में दे दिया। लेकिन उसने महाभारत युद्ध देखने की इच्‍छा जाहिर की। इसपर श्रीकृष्‍ण ने उसे युद्धस्‍थल में एक ऊंचे स्‍थान पर रख दिया। वहां से बर्बरीक ने पूरा युद्ध देखा। कहते हैं कि श्री कृष्‍ण ने बर्बरीक के उस कटे सिर को यह वरदान दिया कि कलयुग में उसे प्रभु के श्‍याम नाम से जाना जाएगा। साथ ही जो भी उनका स्‍मरण करेगा उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

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मान्‍यता है कि इसके बाद श्‍याम कुंड में बाबा श्‍याम का मस्‍तक प्रकट हुआ था। जिन्‍हें खाटू श्‍याम के नाम से जाना गया। कहा जाता है कि जिस दिन बाबा श्‍याम का मस्‍तक प्रकट हुआ था, उस दिन फाल्‍गुन माह में शुक्‍ल पक्ष की एकादशी थी। तब से ही होली के पहले पड़ने वाली इस एकादशी के मौके पर खाटू धाम में मेले का आयोजन होता है। जहां श्रद्धालु खाटू श्‍याम के दर्शन करके पूजा-पाठ करते हैं और उनसे अपने घर-परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।