गांधीजी के अनुसार डॉक्टर का कर्तव्य केवल दवाई देना नहीं, यह भी

संकलन : राधा नाचीज

बीमार होने पर सेवाग्राम में अधिकतर लोग गांधीजी के पास प्राकृतिक चिकित्सा कराने आते थे। गांधीजी की प्राकृतिक चिकित्सा से अनेक मरीज स्वस्थ भी हुए थे। एक दिन एक वृद्ध महिला उनके पास आई और बोली, ‘बापूजी, मेरे शरीर में बहुत खारिश होती है। खारिश कर-करके बदन में घाव हो गए हैं। लाख जतन करके भी मैं ठीक नहीं हो रही।’ गांधीजी एक चिकित्सक को बुलाकर बोले, ‘इन्हें नीम की पत्तियां पीसकर खिलाओ और पीने के लिए छाछ दो। ऐसा करने से इन्हें खारिश में आराम मिलेगा।’

चिकित्सक ने गांधीजी की बात सुनी और उसे अपने साथ लेकर आ गया। उसने वृद्ध महिला का पता पूछा और उसे नीम की पत्तियों के लड्डू दे दिए। वृद्धा अपने घर चली गई। अगले दिन गांधीजी ने चिकित्सक को बुलाया और कहा, ‘वृद्धा को नीम की पत्तियां पीसकर दे दी थी?’ चिकित्सक बोला, ‘जी बापूजी।’ ‘अच्छा, उन्हें कल दिन में कितनी बार छाछ पिलाई थी?’ यह सुनकर चिकित्सक चुप रहा। दरअसल, उसने तो उसे सिर्फ नीम की पत्तियों के लड्डू देकर विदा कर दिया था। छाछ पिलाने का तो उसे ध्यान ही न रहा। चिकित्सक की चुप्पी से गांधीजी सचाई समझ गए। उन्होंने उसे वृद्धा के घर जाकर पता करने को कहा कि उसने कल कितनी बार छाछ पी।

चिकित्सक वृद्धा के घर पहुंचा और उससे पूछा, ‘माई, कल तुमने दिन में कितनी बार छाछ पी थी?’ वृद्धा बोली, ‘बेटा मेरे पास छाछ है कहां जो पीती?’ चिकित्सक ने लौटकर यह बात गांधीजी को बताई तो वे उदास होकर बोले, ‘अमेरिका और जर्मनी से यही सीखकर आए हो? मैंने तुम्हें उसे नीम की पत्तियों के साथ छाछ पिलाने के लिए भी कहा था। तुम्हारा धर्म था कि तुम कहीं से भी छाछ का प्रबंध करते।’ चिकित्सक को स्वयं पर अत्यंत ग्लानि हुई। उसे समझ आ गया कि चिकित्सक का धर्म मरीज को स्वस्थ बनाना है, आधी-अधूरी सलाहें देकर उसकी चिंता से मुक्त हो जाना नहीं।