गीता के ज्ञान से ही महात्मा गांधी बने थे प्रसिद्ध, दिया था यह ज्ञान

गीता सदियों से हमारे जीवन का पथप्रदर्शक बनी हुई है। जो व्यक्ति गीता को आत्मसात कर लेता है, उसका जीवन सफल हो जाता है। गांधीजी जब विलायत में थे, तब उन्हें दो भाइयों ने ‘गीता’ के बारे में बताया। वे भाई एडविन आर्नल्ड का गीता का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ रहे थे। उन दोनों भाइयों ने गांधीजी को संस्कृत में गीता पढ़ने के लिए आमंत्रित किया। यह आमंत्रण पाकर गांधीजी लज्जा से भर गए क्योंकि तब तक उन्होंने गीता को संस्कृत या मातृभाषा में पढ़ा ही नहीं था।

उन भाइयों के आमंत्रण पर उन्होंने सोचा, यदि वे विदेशी होकर गीता के इतने अनुरागी हो सकते हैं तो मैं क्यों नहीं। आखिर गीता में कुछ तो ऐसा है जिससे लोगों में उसके प्रति इतना आकर्षण दिखता है। वह उन भाइयों के साथ संस्कृत में गीता पढ़ने के लिए तैयार हो गए। फिर तो वे जैसे-जैसे गीता के श्लोकों को पढ़ते गए, उनके मन में गीता के श्लोक गहनता से बैठते गए। उन्होंने गीता के लगभग सभी अंग्रेजी अनुवाद पढ़ लिए थे। उन्हें एडविन आर्नल्ड का अनुवाद सबसे अधिक पसंद आया। वह उन्हें मूल गीता के अनुरूप लगा। कुछ वर्षों बाद गांधी जी ने गीता का नित्यपाठ करना प्रारंभ कर दिया।

गांधीजी का मानना था कि यदि प्रत्येक व्यक्ति गीता को कंठस्थ कर ले और उसके उपदेशों को अपने जीवन में उतार ले तो तमाम परेशानियों के बावजूद उसका जीवन सफल हो जाता है। गांधीजी ने गीता के उपदेशों के माध्यम से ही अहिंसा, कर्म, निष्ठा और प्रेम के आचरण को अपने जीवन का अंग बनाया। गीता ने केवल गांधीजी को ही नहीं बदला। जब गांधीजी गीतामय हो गए तो इशके माध्यम से उन्होंने जन-जन को परिवर्तित किया। आज गांधीजी भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोगों के हृदय में स्थित हैं। वह गीता को इसका श्रेय देते थे।– संकलन : रेनू सैनी