ओशो/अाध्यात्मिक गुरु
अपना पता नहीं है, स्वर्ग के नक्शे बना दिए हैं! विवाद चल रहे हैं लोगों के—कितने नर्क होते हैं? हिंदू कहते हैं, तीन। जैन कहते हैं, सात। बुद्ध ने बड़ी मजाक की है, उन्होंने कहा सात सौ। यह मजाक की है, क्योंकि बुद्ध को जरा भी उत्सुकता नहीं है इस तरह की मूढ़ताओं में। लेकिन मजाक भी नहीं समझ पाते लोग। बुद्ध के मानने वाले हैं जो कहते हैं कि नहीं, सात सौ ही होते हैं, इसीलिए कहे। मैं तुमसे कहता हूं, सात हजार। आदमी सत्य से भी झूठ खोज लेता है।
इसलिए आदमी भटकता है। बुद्ध बड़े शुद्ध खोजी हैं। उनकी खोज बड़ी निर्दोष है। घर छोड़ा तो जितने गुरु उपलब्ध थे, सबके पास गए। गुरु उनसे थक गए; क्योंकि असली शिष्य आ जाए तभी पता चलता है कि गुरु, गुरु है या नहीं। झूठे शिष्य हों साथ, तो पता ही नहीं चलता। लोग मुझसे पूछते हैं आकर, कि असली गुरु का कैसे पता चले? मैं उनको कहता हूं, तुम फिक्र न करो। अगर तुम असली शिष्य हो, पता चल जाएगा। नकली गुरु तुमसे बचेगा, भागेगा, कि यह चला आ रहा है असली शिष्य, यह झंझट खड़ी करेगा। तुम गुरु की फिक्र ही छोड़ दो। असली शिष्य अगर तुम हो, तो नकली गुरु तुम्हारे पास टिकेगा ही नहीं। तुम टिके रहना, वही भाग जाएगा।
जिब्रान की कहानी है कि एक आदमी गांव-गांव कहता फिरता था कि मुझे स्वर्ग का पता है, जिनको आना हो मेरे साथ आ जाओ। कोई आता नहीं था, क्योंकि लोगों के पास हजार दूसरे काम हैं, स्वर्ग जाने की इतनी जल्दी वैसे भी किसी को नहीं है। लोग स्वर्गीय तो मजबूरी में होते हैं। जब हाथ-पैर ही नहीं चलते और लोग मरघट पर पहुंचा आते हैं, तब स्वर्गीय होते हैं। कोई स्वर्गीय होने को राजी नहीं था। लोग कहते, आपकी बात सुनते हैं, जंचती है; जब जरूरत होगी तब उपयोग करेंगे, मगर अभी कृपा करें, अभी…अभी हमें जाना नहीं।
एक गांव में ऐसा हुआ…उस आदमी का खूब धंधा चलता था। क्योंकि जिनको स्वर्ग नहीं जाना, उनको बचने के लिए भी गुरु को कुछ गुरु-दक्षिणा देनी पड़ती थी। वह आ जाए गांव में और समझाए, तो उसकी कुछ सेवा भी करनी पड़ती, पैर भी पड़ने पड़ते। वे कहते, तुम बिलकुल ठीक हो, मगर अभी हम साधारणजन, अभी संसार में उलझे हैं; जब कभी सुलझेंगे, आपकी बातों का ख्याल करेंगे।
गुरु का धंधा चलता रहा। कुछ समय बाद उस गुरु को एक असली शिष्य मिल गया। उसने कहा, अच्छा, तुम्हें पता है! पक्का पता है? बिलकुल पक्का पता है। उसने कहा, अच्छा, मैं चलता हूं। कितने दिन लगेंगे पहुंचने में? तब जरा गुरु घबड़ाया कि यह जरा उपद्रवी मालूम पड़ता है। पैर छुओ, बात ठीक है। साथ चलने की बात! मगर अब सबके सामने मना भी नहीं कर सका। उसने कहा, देखेंगे, भटकाएंगे साल दो साल, भाग जाएगा अपने आप। छह साल बीत गए। वह उनके पीछे ही पड़ा है। वह कहता है कि कब आएगा? अभी तक आया नहीं।
एक दिन उस गुरु ने कहा, तेरे हाथ जोड़ता हूं, भैया! तू जब तक न मिला था हमको भी पता था स्वर्ग कहां है; अब तेरे कारण हम भी पता भूल गए हैं। दुनिया में नकली गुरु हैं, क्योंकि नकली शिष्यों की बड़ी संख्या है। नकली गुरु तो बाइप्राडक्ट हैं। वे सीधे पैदा नहीं होते। नकली शिष्य उन्हें पैदा कर लेता है। बुद्ध सभी गुरुओं के पास गए। गुरु घबड़ा गए। क्योंकि यह व्यक्ति निश्चित प्रामाणिक था। जो उन्होंने कहा, वह इसने इतनी पूर्णता से किया कि उनको भी दया आने लगी, कि यह तो हमने भी नहीं किया है! कोई करता ही नहीं था, तब तक बात ठीक थी। इस पर दया आने लगी। इससे यह भी न कह सकते थे कि तुमने पूरा नहीं किया, इसलिए उपलब्ध नहीं हो रहा है। इसने पूरा-पूरा किया। उसमें तो रत्ती भर कमी नहीं रखी। गुरुओं ने हाथ जोड़कर कहा कि बस, हम यहां तक तुम्हें बता सकते थे, इसके आगे हमें खुद भी पता नहीं है।
सारे गुरुओं को बुद्ध ने चुका डाला। एक गुरु साबित न हुआ। तब सिवाय इसके कोई रास्ता न रहा कि खुद खोजें। और इसीलिए बुद्ध की बातों में बड़ी ताजगी है, क्योंकि उन्होंने खुद खोजा। किसी गुरु से नहीं पाया था। किसी से सुनकर नहीं दोहराया था। फिर खुद खोज पर निकले—नितांत अकेले, बिना किसी सहारे के। शास्त्र धोखा दे गए, गुरु धोखा दे गए, सब पीछे हट गए, अकेला रह गया खोजी। ऐसा ही होता है। जब तुम्हारी खोज असली होगी, तुम पाओगे शास्त्र काम नहीं देते। शास्त्र तभी तक काम देते हैं जब तक तुम उनका भजन-पाठ करते हो। बस तभी तक। अगर तुमने यात्रा शुरू की, तुम तत्क्षण पाओगे शास्त्र में हजार गलतियां हैं। होनी ही चाहिए। क्योंकि हजारों साल तक हजारों लोग उसे दोहराते रहे हैं, बनाते रहे हैं। उसमें बहुत कुछ छूट गया है, बहुत कुछ जुड़ गया है। लेकिन यह तो पता तुम्हें तभी चलेगा जब तुम यात्रा करोगे। एक तुम नक्शा लिए घर में बैठे हो, उसकी तुम पूजा करते हो—तो कैसे पता चलेगा? यात्रा पर निकलो तब तुम्हें पता चलेगा