गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति पर खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा कब और कैसे शुरू हुई, जानें कथा

मकर संक्रांति का पर्व आज देशभर में श्रद्धा एवं उल्लास के साथ मनाया जा रहा है, हालांकि कुछ जगहों पर रविवार के दिन भी मकर संक्रांति का पर्व मनाया गया है। गोरखनाथ मंदिर में सबसे पहले गोरक्षपीठाधीश्वर व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सोमवार को खिचड़ी चढ़ाई। इसके बाद नेपाल के शाही परिवार की तरफ से खिचड़ी चढ़ाने की पंरपरा का पालन किया गया है। गोरखनाथ मंदिर में रविवार को ही कम से कम एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने खिचड़ी चढ़ा ली थी। आइए जानते हैं गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत कैसे हुई।

यूपी सीएम ने चढ़ाई खिचड़ी
मकर संक्रांति के दिन भोर में सबसे पहले गोरक्षपीठ की तरफ से पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ खिचड़ी चढ़ाकर बाबा को भोग अर्पित किया। इसके बाद नेपाल राजपरिवार की ओर से आई खिचड़ी बाबा को चढ़ाई गई। तब, मंदिर के कपाट सभी के लिए खोल दिए गए और जनसामान्य की आस्था खिचड़ी के रूप में निवेदित होनी शुरू हो गई। मकर संक्रांति पर गोरखनाथ मंदिर में डेढ़-दो माह तक लगने वाले खिचड़ी मेले में श्रद्धा, मनोरंजन और रोजगार की त्रिवेणी बहती है। पूरी प्रकृति को ऊर्जस्वित करने वाले सूर्यदेव के उत्तरायण होने पर गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की त्रेतायुग से चली आ रही यह अनूठी परंपरा पूरी तरह लोक को समर्पित है। गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी के रूप में चढ़ाए जाने वाला अन्न वर्षभर जरूरतमंदों में वितरित किया जाता है। मंदिर के अन्न क्षेत्र में कभी भी कोई जरूरतमंद पहुंचा, खाली हाथ नहीं लौटा। ठीक वैसे ही, जैसे बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाकर मन्नत मांगने वाला कभी निराश नहीं होता।

ऐसे शुरू हुई खिचड़ी की परंपरा
गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा त्रेतायुगीन मानी जाती है। मान्यता है कि तत्समय आदि योगी गुरु गोरखनाथ एक बार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित मां ज्वाला देवी के दरबार मे पहुंचे। मां ने उनके भोजन का प्रबंध किया। कई प्रकार के व्यंजन देख बाबा ने कहा कि वह तो योगी हैं और भिक्षा में प्राप्त चीजों को ही भोजन रूप में ग्रहण करते हैं। उन्होंने मां ज्वाला देवी से पानी गर्म करने का अनुरोध किया और स्वयं भिक्षाटन को निकल गए।

भिक्षा मांगते हुए वह गोरखपुर आ पहुंचे और राप्ती और रोहिन के तट पर जंगलों में बसे इस स्थान पर धूनी रमाकर साधना लीन हो गए। उनका तेज देख तभी से लोग उनके खप्पर में अन्न (चावल, दाल) दान करते रहे। इस दौरान मकर संक्रांति का पर्व आने पर यह परंपरा खिचड़ी पर्व के रूप में परिवर्तित हो गई। तब से बाबा गोरखनाथको खिचड़ी चढ़ाने का क्रम हर मकर संक्रांति पर जारी है। कहा जाता है कि उधर ज्वाला देवी के दरबार मे बाबा की खिचड़ी पकाने के लिए आज भी पानी उबल रहा है।

मकर संक्रांति के पावन पर्व पर गोरक्षपीठाधीश्वर नाथ पंथ की विशिष्ट परंपरानुसार शिवावतारी गुरु गोरखनाथ को लोक आस्था की खिचड़ी चढ़ाकर समूचे जनमानस की सुख समृद्धि की मंगलकामना करते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार तथा देश के विभिन्न भागों के साथ-साथ पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भी कुल मिलाकर लाखों की तादाद में श्रद्धालु शिवावतारी बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाते हैं।

सामाजिक समरसता का भी केंद्र है गोरखनाथ मंदिर

गोरखनाथ मंदिर सामाजिक समरसता का ऐसा केंद्र है जहां जाति, पंथ, महजब की बेड़ियां टूटती नजर आती हैं। इसके परिसर में हिंदू, मुसलमान, सबकी दुकानें हैं। यानी बिना भेदभाव सबकी रोजी रोटी का इंतजाम है। यही नहीं, मंदिर परिसर में डेढ़-दो माह तक लगने वाला खिचड़ी मेला भी जाति-धर्म के बंटवारे से इतर हजारों लोगों की आजीविका का माध्यम बनता है। मंदिर परिसर में नियमित रोजगार करने वालों से लेकर मेला में दुकान लगाने वालों तक, बड़ी भागीदारी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की होती है। उन्होंने कभी कोई भेदभाव महसूस नहीं किया बल्कि अपनेपन के भाव से विभोर होते रहते हैं। मेले में खरीदारी से लेकर मनोरंजन के साधनों तक भरपूर इंतज़ाम है। रविवार को ही ग्रामीण इलाकों से लाखों लोग गोरखनाथ मंदिर पहुंच गए। उन्होंने 14 जनवरी का ख्याल कर खिचड़ी भी चढ़ा दी। अनुमान है कि रविवार को ही एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने खिचड़ी चढ़ा दी थी। यह सिलसिला सोमवार को भी थमता नहीं दिख रहा।