इंग्लैंड के राजा कैन्यूट के दरबार में ऐसे लोगों का जमघट लगने लगा था जो राजा की प्रशंसा के पुल बांध कर ओहदे व धन पाने के आकांक्षी थे। एक दिन एक चापलूस एवं खुशामदी ने कहा, ‘राजन! आपकी कीर्ति पूरे संसार में फैल चुकी है। आप तो धरती पर साक्षात ईश्वर हैं। आपका आदेश समुद्र भी नहीं टाल सकता।’ राजा की इस तरह की चापलूसी भरी एवं झूठी प्रशंसा की खबरें उनके एक खास गुरुजी तक पहुंची। इससे गुरुजी चिंतित हुए।
गुरुजी ने राजा को सावधान करते हुए कहा, ‘इन खुशामदियों से बच कर रहो। तुम्हें ईश्वर बता कर ये तुम्हारा अहंकार बढ़ा रहे हैं। ये तुम्हारे एवं राज्य के लिए गंभीर खतरा बन जाएंगे।’ राजा कैन्यूट ने विषय की गंभीरता को समझते हुए अगले ही दिन ईश्वर बताने वाले उस दरबारी को बुलाया। कैन्यूट उसे समुद्र तट पर घुमाने के लिए अपने साथ ले गए। राजा की मंशा से अनभिज्ञ वह दरबारी अब भी राजा की प्रशंसा के पुल बांध रहा था, लेकिन राजा ने उसकी बातों की अनदेखी करते हुए कहा, ‘मैं ईश्वर होने के नाते तुम्हें आदेश देता हूं कि समुद्र की लहरों में कूद पड़ो। यदि तुम डूबने लगोगे तो मैं समुद्र को आदेश दूंगा। उसकी लहरें तुम्हें समुद्र तट पर छोड़ देंगी।’
राजा के ये शब्द सुनते ही मृत्यु के भय से वह खुशामदी दरबारी पसीने से तर हो गया। राजा ने कहा, ‘तुम चापलूसों की चाल मैं अच्छी तरह जानता हूं। मुझे ईश्वर बता कर व्यक्तिगत लाभ उठाना चाहते हो? आज से मेरे पास आने का दुस्साहस न करना वरना सारा जीवन जेल में गुजारना पड़ेगा।’ इस घटना की खबर समूचे राज्य में फैल गई। परिणाम यह हुआ कि सम्राट कैन्यूट को तो चापलूसों से मुक्ति मिल ही गई, उनके राज्य में चापलूसों एवं खुशामदों द्वारा झूठी प्रशंसा की असामान्य स्थिति भी धीरे-धीरे नियंत्रण में आने लगी।
संकलन : बेला गर्ग