1) मॉस वोटर्स का एक साथ उनकी तरफ आसानी से झुकाव होने की संभावना।
2) अथवा कभी-कभी उम्मीदवार की अपनी धार्मिक आस्था भी इसका कारण होती है।
3) अपने विरोधी से अधिक धर्मनिष्ठ दिखने अथवा सामाजिक होने का संदेश वोटर तक पहुँचना।
ऐसा माना जाता है कि भाजपा के उदय में अयोध्या के राम मंदिर का चुनावी मुद्दा होना सबसे बड़ा कारण था। अब भाजपा की ही तर्ज पर अन्य दल भी बिल्कुल ताल से ताल मिलाकर डटे हुए हैं। विभिन्न हिंदू मंदिरों में पूजा करने के लिए श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी अचानक से भक्ति यात्राएं शुरू कर दी हैं। माननीय श्री अखिलेश यादव भी खुद को एक धर्मनिष्ठ हिंदू के रूप में प्रस्तुत करने मे लगे हुए हैं। यह हाल गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और अन्य चुनावी राज्यों में समान रूप से देखा जा सकता है।
इन चुनाव प्रचारों में ये भी देखा गया है कि इन धार्मिक यात्राओं और कार्यक्रमों को व्यापक रूप से प्रचारित भी किया जाता है, जिससे उस खास मान्यता वाले वोटर को राजनीतिक उम्मीदवार भी अपने जैसा ही धर्मनिष्ठ प्रतीत होने लगता है। और उसका झुकाव उम्मीदवार की ओर स्वतः ही बढ़ने लगता है।
इसे सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र के व्यापक हिंदुकरण के लिए एक स्मार्ट राजनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में भी पढ़ा जा सकता है।
भक्ति भारत का मानना है – भारत, जहां हिंदू पहचान के लिए किसी राजनीतिक शक्ति की आवश्यकता नहीं है और मंदिर किसी भी चुनाव अभियान को बढ़ावा देने के लिए प्रमुख स्थान नहीं हैं। धर्मनिरपेक्षता की वेदी पर पूजा करते हुए आम जनता की सेवा करना चुनावी आह्वान होना चाहिए।