एक रोज गुरु नानक साहब ने उस बालक से पूछ लिया, ‘बेटा, तू रोज सवेरे यहां क्यों आता है, तेरे लिए तो यह सोने का समय है। अभी से तुझे वाणी के पाठ में क्या सुख मिलता है? क्या तेरा मन खेलों की तरफ नहीं जाता?’ लड़के ने सिर झुकाकर आदर पूर्वक कहा, ‘एक बार मेरी मां ने मुझे चूल्हे में लकड़ियां जलाने को कहा था। उस क्रिया में मैंने देखा कि मां आग में सबसे पहले छोटी-छोटी, पतली-पतली लकड़ियों को जलाती थीं क्योंकि छोटी लकड़ियां बड़ी लकड़ियों के मुकाबले जल्दी आग पकड़ लेती थीं। बड़ी व मोटी लकड़ियों पर आग का असर देर से होता था। उस समय से ही मेरे मन में यह बैठ गया कि ज्ञान भी शायद हम बच्चों में जल्दी पकड़ सकता है। इसीलिए आपकी संगत मुझे सबसे ज्यादा प्यारी है।’
गुरु साहब उस बालक की समझदारी से खुश हो गए और बोले, ‘तू उम्र में तो छोटा है पर अकल में बहुत बुड्ढा है।’ उस दिन के बाद उस बच्चे का नाम बुड्ढा सिंह पड़ गया। बाबा बुड्ढा सिंह छठी पातशाही गुरु हरगोबिंद जी के समय तक जीवित रहे। गुरु के घर में उनका बड़ा आदर था। गुरु अंगद देव, गुरु अमर दास, रामदास, अर्जन देव और हरगोविंद को गुरु गद्दी का तिलक उन्होंने ही लगाया था। यह जरूरी नहीं कि उम्र से कोई समझदार या नादान हो। यह तो हर जीव की निजी परिणति होती है।– संकलन : निर्मल जैन