संकलन: दीनदयाल मुरारका
बात उन दिनों की है, जब देश में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन मजबूत होता जा रहा था। अंग्रेज अपने आप को भारतीयों से ऊंचा मानते थे। भारतीयों से बुरा बर्ताव करना उनके सामान्य व्यवहार का हिस्सा हो गया था। वे बात-बात पर भारतीयों को नीचा दिखाना चाहते थे। अंग्रेजों के सामने से कोई भी भारतीय पालकी या घोड़े पर सवार होकर निकल जाए यह उन्हें बर्दाश्त नहीं होता था। ऐसा करने पर अंग्रेज उन्हें सरेआम बेइज्जत करते थे।
एक दिन राजा राममोहन राय एक पालकी में बैठकर कहीं जा रहे थे। रास्ते में कलेक्टर हैमिल्टन खड़ा था। उसे देखकर भी राजा राममोहन राय ने उसके प्रति विशेष आदर नहीं दिखाया। हैमिल्टन को लग रहा था कि राजा राममोहन राय पालकी रुकवाकर उतरेंगे और उसका अभिवादन करेंगे। मगर उनकी पालकी अपनी चाल से आगे बढ़ती रही। हैमिल्टन गुस्से से लाल पीला हो गया। उसने तुरंत पालकी रुकवाने का आदेश दिया।
पालकी रुकवाने पर राजा राममोहन राय नीचे उतरे और कलेक्टर हैमिल्टन से पूछा कि क्या बात है? हैमिल्टन ने उन्हें बहुत भला-बुरा कहा। उस समय राजा राममोहन राय ने बात बढ़ाना ठीक नहीं समझा। वह हैमिल्टन की किसी बात का जवाब दिए बगैर पालकी में वापस जा बैठे और आगे बढ़ गए। बाद में उन्होंने इस बात की शिकायत लॉर्ड मिंटो से की। लेकिन लॉर्ड मिंटो ने हैमिल्टन को मामूली चेतावनी देकर बात समाप्त कर दी।
राजा राममोहन राय इतने से संतुष्ट नहीं हुए। हालांकि उनके मित्रों ने समझाया कि अब तो हैमिल्टन को डांट भी पड़ चुकी है। इसलिए बात बढ़ाने में कोई फायदा नहीं। लेकिन राजा राममोहन राय बोले, ‘यह भारत के स्वाभिमान का मुद्दा है। अगर अभी इस भेदभाव का विरोध नहीं किया गया तो यह समस्या बढ़ती ही जाएगी।’ उन्होंने हिंदुस्तानियों से अंग्रेजों द्वारा किए गए बुरे बर्ताव के खिलाफ कानून बनवाने की ठान ली और बाद में अपने अथक प्रयासों से ऐसा कानून बनवाने में सफल भी हुए।