जब एक मसखरे को महाराजा रणजीत सिंह ने दे दिया अपना प्यारा हाथी

महाराजा रणजीत सिंह कला साहित्य के प्रेमी राजा थे। वह बहुत ही उदार स्वभाव के थे। एक बार उनके दरबार में अलीजान नाम का एक मसखरा आया। उसने दरबार में इतने व्यंग्य सुनाए कि महाराजा रणजीत सिंह प्रसन्नता से झूम उठे। वह इतने खुश हुए कि उसी क्षण अपना एक हाथी उसे भेंट दे दिया। हाथी को लेकर वह प्रसन्नता के साथ घर पहुंचा। घर पहुंचने पर उसके मन में यह विचार कौंधा कि हाथी को किस प्रकार खिलाया जाए। इसे एक समय में कम से कम सवा मन भोजन चाहिए होगा। वह कहां से आएगा?

उसे एक युक्ति सूझी। उसने उसी क्षण हाथी के गले में एक ढोल बांध दिया और उसे खुले में छोड़ दिया। हाथी सीधा महाराजा रणजीत सिंह के फीलखाने में पहुंच गया। हाथी के गले में ढोल देखकर सभी के मन में कौतूहल जागा। हाथी के चारों ओर बहुत सारे लोग इकट्ठा हो गए। राजसेवकों ने देखा तो जाकर सारी बात महाराजा को बताई। महाराजा को क्रोध आ गया कि मसखरे ने हाथी की यह दुर्दशा की! यह हाथी मुझे कितना प्यारा है। मैंने कितने प्यार से अपना सबसे प्यारा हाथी उस दिया था। अपने सेवक को भेजकर महाराजा ने उसे बुलवाया और कहा, तुम्हें शर्म नहीं आई?

मसखरे ने कहा, ‘गरीब परवर! आपने मुझे पुरस्कार में हाथी प्रदान किया। पर आपको पता है कि मैं कितना गरीब हूं। समय पर मुझे स्वयं को भी भोजन नहीं मिलता तो मैं हाथी को कैसे भोजन कराता। इसलिए मैंने सोचा कि गले में ढोल बांधकर इसे मुक्त कर दूं ताकि जिस प्रकार मैं ढोल बजाकर अपना पेट पालता हूं, वैसे ही यह भी ढोल बजाकर अपना पेट भर ले।’ महाराजा रणजीत सिंह ने जब यह बात सुनी तो उन्हें सहज ही हंसी आ गई, अपनी भूल का अहसास भी हुआ। उन्होंने मसखरे को पर्याप्त धन देकर विदा किया।– संकलन : ललित गर्ग