स्टेशन पर उनका स्वागत करने के बाद सब लोग पैदल ही आश्रम की ओर रवाना हो गए। उनके स्वागत के लिए गांधीजी द्वार पर खड़े थे। अंदर जाकर दोनों ने कुछ देर तक बातें कीं। फिर नाश्ते का सामान मंगाया गया। उसमें केले, अनानास, संतरे, नारंगी, पपीता और आम आदि ताजा फल थे। सर बेंजामिन से खाने की प्रार्थना करते हुए गांधीजी ने कहा, ये फल मेरे और मेरे साथियों के लगाए और पाले गए पेड़ों के हैं। अपने बगीचे में अपनी मेहनत से बड़े किए गए वृक्षों के फल, प्रेम सहित अर्पण करने से और अधिक अच्छा स्वागत हम आपका क्या कर सकते हैं! आपको पसंद आए तो हम यहां जौ-गेहूं की ब्रेड तैयार करते हैं, वह भी हाजिर करें। इन्हें स्वीकार कर आप हमें कृतज्ञ कीजिए।
गांधीजी का ऐसा शिष्टाचार देखकर बेंजामिन रॉबर्टसन बहुत प्रसन्न हुए। वह नाश्ता करते जाते थे और फलों की मिठास का बखान भी करते जाते थे। गांधीजी हंसकर बोले, इन फलों में हमारे पसीने की मिठास मिल गई है। इसलिए ये और भी मीठे लगते हैं। बेंजामिन गांधीजी के कहने का अर्थ समझ गए, और देर तक आश्रम के सादे और स्वावलंबी जीवन की प्रशंसा करते रहे।
संकलन : सुभाष चंद्र शर्मा