जब गांधी जी की ईमानदारी को देखकर नतमस्‍तक हुए आश्रम के लोग

संकलन : राधा नाचीज

गांधीजी के आश्रम में जाने-माने लोग तरह-तरह से मदद करने के लिए आते थे, ताकि आश्रमवासियों को असुविधा न हो और देश-सेवा में कोई बाधा उत्पन्न न हो। गांधीभक्त आश्रम के लिए चंदा भी देते थे। आश्रम में राष्ट्रीय शाला बनवाने की बात चली। लेकिन मकान बनवाने के लिए रुपये नहीं थे। यह मालूम होने पर एक धनी व्यक्ति ने राष्ट्रीय शाला के निर्माण के लिए चालीस हजार रुपये दिए।

मकान बनने का काम आरंभ हो पाता, इसके पहले ही नगर में फ्लू फैल गया। फ्लू की चपेट में आकर सौ-सौ व्यक्ति प्रतिदिन मरने लगे। इतने लोगों की असमय मौत से हाहाकार मच गया। गांधीजी ने सब कामों को छोड़ कर फ्लू की चपेट में आए लोगों की मदद करनी शुरू की। तभी उन्हें ख्याल आया कि एक सज्जन ने राष्ट्रीय शाला के लिए अच्छी-खासी रकम दी है। उन्होंने एक आश्रमवासी से कहा, ‘जिन सज्जन ने मकान बनाने के लिए धन दिया है, उन्हें वापस कर दीजिए।’ यह सुनकर आश्रमवासी हैरानी से बोला, ‘पर बापू, उन्होंने तो रुपये वापस नहीं मांगे हैं, फिर आप उन्हें लौटाने के लिए क्यों कह रहे हैं?’

आश्रमवासी की बात पर गांधीजी बोले, ‘तुम जानते हो कि उन सज्जन ने रुपये मकान बनाने के लिए दिए हैं। इस समय चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। फ्लू ने अनेक लोगों का जीवन लील लिया है। इस समय हमें अपना सारा ध्यान लोगों के इलाज पर लगाना है। ऐसे में रुपये खर्च हो गए तो अनर्थ हो जाएगा। उस सज्जन ने ये रुपये मकान बनाने के लिए दिये हैं। इसलिए उस धन का प्रयोग वहीं होना चाहिए। अभी तो मकान बनने से रहा, इसलिए उनके रुपये लौटाना ही उचित है।’ यह बोलकर गांधीजी रोगियों की मदद के लिए चल दिए। परंतु आश्रमवासी गांधीजी की ईमानदारी के समक्ष नतमस्तक हो गए।