एक दिन अंग्रेजों ने श्रीकांत जयरंजन को नेताजी सुभाषचंद्र बोस को मारने की जिम्मेदारी दी। जयरंजन दास खुफिया तरीके से किसी तरह सुभाषचंद्र बोस के पास जा पहुंचे। वह उन्हें मारने ही वाले थे कि उनकी पत्नी नीरा ने उन्हें पहचान लिया। इससे पहले कि वह नेताजी को अपनी गोली का शिकार बनाते, नीरा ने तुरंत संगीन अपने पति जयरंजन दास के पेट में घोंप दी और उसे मौत के घाट उतार दिया। इस तरह नेताजी बच गए। नीरा की वीरता और त्याग देखकर नेताजी दंग रह गए। आजाद हिंद फौज के समर्पण के बाद नीरा को पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा सुनाई गई। वहां उन्हें घोर यातनाएं दी गईं।
एक दिन जेलर ने उनसे पूछा, ‘अगर तुम यह बता दो कि नेताजी कहां हैं तो हम तुम्हें छोड़ देंगे।’ लेकिन उन्होंने किसी भी हालत में अपना मुंह नहीं खोला। नेताजी के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए उन पर बर्बर अत्याचार किए गए। लोहे की सलाखों से उनके शरीर को दागा गया, लेकिन उन्होंने उफ्फ तक न की। वर्ष 1947 में देश स्वतंत्र होने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। लेकिन उसके बाद भी जीवन कठिन ही बना रहा। उन्होंने फूल बेचकर जीवनयापन किया। 26 जुलाई 1998 को चारमीनार के पास एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। नीरा आर्या आज भी हर भारतीय के हृदय में जीवित हैं।– संकलन : रेनू सैनी