जानिए आजाद हिंद फौज के इस गाने से क्यों घबरा गई अंग्रेज सरकार, रेकॉर्डिंग पर लगा दी थी रोक

तब सिंगापुर की सबसे ऊंची इमारत ‘कथय’ थी। जापानी सेनाओं ने इस पर कब्जा कर लिया और इसे रेडियो स्टेशन बना दिया। इसी केंद्र पर 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद फौज का आगाज होने वाला था। आगाज के समय नेताजी को एक कौमी गीत चाहिए था। लक्ष्मी सहगल का सुझाया एक गीत उन्हें अच्छा लगा। अब बस तलाश थी एक संगीतकार की, जो इसे लयबद्ध कर लोगों में जोश भर दे। यह बात वहीं जेल में बंद एक भारतीय युद्धबंदी तक पहुंची। वह नेताजी से मिलने और उनकी फौज में भर्ती होने के लिए व्याकुल हो गया।

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एक संयोग बना और उसकी भर्ती हो गई। लय बनाने और गुनगुनाने का तो उसे बचपन से शौक था। नेताजी ने उसे बुलाकर कहा, ‘कौमी तराना सुनने के बाद ‘कथय’ की छत उड़ जाए और ऊपर आसमान दिखने लगे।’ फौजी ने चुनौती स्वीकार की। उसने‘शुभ सुख चैन की बरखा बरसे, भारत भाग है जागा’ के साथ ‘कदम-कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा’ की संगीतमय प्रस्तुति दी। इसने आजाद हिंद फौज के हर सैनिक को रोमांचित कर दिया। खुद नेताजी के रोंगटे खड़े हो गए। उन्होंने वहीं घोषणा कर दी कि आजादी मिलने पर लाल किले से यही सैनिक यही गीत प्रस्तुत करेगा।

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इधर गीत की लोकप्रियता से अंग्रेज सरकार घबरा गई। उसने इसकी रेकॉर्डिंग पर रोक लगा दी। रेकॉर्डिंग बजाने और गाने वालों को जेल में बंद किया जाने लगा। खैर, देश को आजादी मिली और 15 अगस्त 1947 को नेहरू ने उसी सैनिक को लाल किले से कौमी तराना प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया। फौजी ने अपनी आर्केस्ट्रा टीम के साथ लालकिले से फिर कथय वाला वही सीन बना दिया। प्रस्तुति के दौरान उसकी आंखें नम थीं। आजादी के दिन इस गीत को प्रस्तुत करने का उसका और नेताजी का सपना पूरा हो रहा था। इस संगीतकार सैनिक को हम कैप्टन राम सिंह ठाकुर के नाम से जानते हैं।- संकलन: हरिप्रसाद राय