जानिए कैसे अन्याय-अत्याचार से रक्षा करता है रंगों का का पर्व होली

-डॉ. प्रणव पण्ड्याहोली एक यज्ञरीय पर्व है। इसे ऋषियों ने प्रेम-प्रसार का पर्व बनाया है। पिछले वर्ष के वैर-विरोध को होली की पवित्र अग्नि में भस्म करके दिलों में फिर से मित्रता स्थापित करने का पर्व है। होली हमारी सामुदायिक एकता के भावों को सुदृढ़ करने का त्योहार है। आपसी प्यार-मोहब्बत के रिश्तों को उल्लास से भिगो देने का त्योहार है। जन-श्रद्धा का भाव-पक्ष निर्विवाद रूप से इस पर्व को होलिका द्वारा प्रह्लाद को जलाए जाने की घटना से जोड़ता है। पुराणकालीन आदर्श सत्याग्रही भक्त प्रल्हाद के दमन के लिए हिरण्यकश्यपु के छल-प्रपंच सफल न हो सके। उसे भस्म करने के प्रयास में होलिका राक्षसी जल मरी और प्रल्हाद तपे कुंदन की तरह प्रभु कृपा से चमत्कारिक ढंग से बाहर निकल आए। खीझकर क्रोध से उन्मत राक्षसराज हिरण्यकश्यपु जब खुद ही उसे मारने दौड़ा तो नरसिंह भगवान प्रकट होकर उस अत्याचारी के प्राण हर लिए।शिव-शक्ति के योग के पर्व के रूप में मनाया जाता है महाशिवरात्रि का त्योहारअध्यात्म और भारतीय संस्कृति को देव गरिमा प्रदान करने वाले राष्ट्र संत पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य जी के अनुसार दुष्टजनों के अत्याचारों से जनता की रक्षा करने वालों को नरसिंह कहते है। होली का पर्व यही कहता है कि ईश्वरीय सत्ता के अनुशासन को जीवन में उतार कर हम अन्याय, अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाएं। हमारी सत्य शक्ति के संघीकरण से नृसिंह चेतना का अवतरण हो, जो पीड़ित लोगों का उद्धार करें। पर्व की यह परंपरा जनश्रद्धा को उल्लासपूर्ण तरीके से विवेक सम्मत मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए बनायी गई है; लेकिन आजकल कुछ विसंगतियों ने इस सद्भाव के त्योहार को बदरंग करना शुरू कर दिया है। मस्ती पर बदमस्ती हावी हो जाती है। रंजीशें उभर आती है। रंगों का घोल तेजाब में बदल जाता है। मनों में दबी हविस आज के दिन मुंह काला करना चाहती है। सज्जनता मुंह छुपाए अपने ही घर में नजरबंद है। सड़कों पर अब सिर्फ खौफ है।संस्कृति को उसके नालायक बेटों ने विकृत कर दिया है। कल के अखबार में रोती भारत मां के आंसू होंगे, हर दिल अनजाने पाप के पश्चात्ताप से भरा होगा। यह काली छाया इस पर्व की होगी, जो चमका था सुबह सूर्य सा और शाम होते-होते कहीं दूर झुरमट में मुंह छिपाए शर्म से गड़ गया है। यह विसंगति भारतीय जनमानस में क्यों आ गई? वह इंसानी जज्बा, मोहब्बत दिखाई क्यों नहीं पड़ती, जिनका यह पर्व प्राण है। जीने की रफ्तार, कामनाओं की अंधी दौड़ चाहे जितनी तीव्र क्यों न हो, अपने समाज के चेहरे पर लगी इस कालिख को हमें मिटाना होगा। संस्कृति के गौरव की रक्षा करनी होगी, क्योंकि उसमें हमारे गौरव की भी रक्षा है। इसका हल उन्हीं के सूत्रों में निहित है, जिन्होंने हमें पर्व दिए हैं। आइए, इसका हल भारतीय संस्कृति से पूछें, प्रबुद्धजनों से विचार विनिमय करें। उनसे संस्कार-सूत्र मांगे। जीवन जीने की कला को सीखें। सद्भाव के शाश्वत रंगजीवन में भर लें। आनंदित रहने की कला जानें। मिलकर इस उद्देश्य से बैठें, यही तो यज्ञ है।अहंकार का न होना भी अच्छा लक्षण नहीं: ओशोयज्ञ से सबसे हित की बात को कहना हमारी अपनी परंपरा है। आज का होली पर्व भी यज्ञ ही है। नरसिंह देवता की पूजा करें, उनके दर्शन को जीवन में उतारें। अन्यायों का मिलकर सामना करें, यही उनकी पूजा है, यज्ञ है, अध्यात्म है। नरसिंह का चिंतन हमें ताकत दे, ताकि हम राष्ट्र देवता जैसे हृदल वाले सिंहों का अवतरण कर सकें। नरसिंह सब अन्यायियों, भ्रष्टाचारियों का पेट फाड़ दें। धन-सत्ता और जनसत्ता के घोटाले करने वालों का नाश कर डालें। आइए होली पर्व मनाएं, नरसिंह की पूजा करें। होली की पवित्र अग्नि का संदेश है कि नरसिंह बनें। पर्व की खुशियां सबको बांटें, रंग बांटें, संदेश बांटें। एक हल्ले में सबको पर्व के रस-रंग से सराबोर कर दें। बुलंदी से बोलें-होली है।(लेखक: देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख हैं।)इसलिए दीपावली को पर्वों का राजा कहना गलत नहीं होगा