एक बार गांधी जी दिल्ली के हरिजन आश्रम गए। इस आश्रम में एक कार्यशाला भी चलाई जाती थी, जिसमें लड़कों को तरह-तरह के रोजगार परक कौशल सिखाए जाते थे। बापू का मन था कि वे अपनी आंखों से इस कार्यशाला के कामों को देखें, जिन्हें चारों तरफ इतना सराहा जाता है। वे मानते थे कि सबको स्वावलंबी बनाकर ही देश की आर्थिक समस्या को हल किया जा सकता है और गरीबी से निजात पाई जा सकती है। इसलिए उन्होंने कम समय होने के बावजूद फैसला किया कि वे स्वयं देखेंगे कि बच्चों को किस तरह रोजगार-परक शिक्षा दी जा रही है।
जब बापू कार्यशाला का निरीक्षण करने के लिए निकले तो जहां-जहां से वे गुजरे, वहां बालकों ने अपना काम रोक दिया और उत्सुकतावश गांधी जी को देखने लगे। उनके बारे में बालकों ने इतना-कुछ सुन रखा था कि उन्हें देखने की बाल-सुलभ जिज्ञासा सबके मन में थी, जिस वजह से कई अपना काम छोड़कर उनके पीछे-पीछे भी चलने लगे। तभी गांधी जी ने गौर किया कि दूर बैठा एक लड़का रोटियां बेल रहा है और साथ में चूल्हे पर सेंकता भी जाता है। वह यह काम इतनी तल्लीनता से कर रहा था कि उसे बापू के होने का पता ही नहीं लगा और न ही उसका ध्यान बच्चों के हुजूम पर गया।
जब बापू कार्यशाला से बाहर आए तो एक व्यक्ति बोला, ‘बापू, रोटी बना रहे उस लड़के ने तो आपको देखा ही नहीं।’ बापू ने तुरंत जवाब दिया, ‘अगर कार्यशाला में कोई था, जिसने वाकई मुझे देखा है, तो सिर्फ उसी लड़के ने, जो पूरी एकाग्रता से रोटियां बना रहा था। वह बालक जानता है कि कर्म और पूजा में कोई भेद नहीं है।’ यदि हम सभी उस लड़के की तरह गांधी जी को देख सकें, तो स्वयं की और देश की उन्नति निश्चित है।
संकलन : प्रतीक पाण्डे