जान‍िए जॉर्ज स्‍टीफेंसन की पूरी कहानी, कैसे वह बिना पढ़ाई के बन गए मैकेनिकल इंजीनियर

जॉर्ज स्टीफेंसन के माता-पिता माबेल और रॉबर्ट निरक्षर थे। पिता कोयले की खदान में मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करते थे। उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे अपने बच्चे को स्कूल भेज सकें। हमउम्र बच्चों को स्कूल जाते देख जॉर्ज जब मां से स्कूल भेजने की जिद करते और रोते तो माबेल किसी तरह उन्हें समझा देतीं कि स्कूल उनके नसीब में नहीं है।

समय के साथ जॉर्ज अपने माता-पिता की विवशता तो समझ गए, लेकिन पढ़ने की प्रबल इच्छा उनके मन में कहीं न कहीं बढ़ती ही रही। इस बालक में माता-पिता के प्रति असीम श्रद्धा थी। यही कारण था कि वह कुछ कमा कर माता-पिता की मदद करना चाहते थे। बस इसी चाहत ने पिता की तरह उन्हें भी कोयले की खदान में मजदूर बना दिया । बतौर मजदूर, जॉर्ज को जो भी कमाई होती, उसे अपने माता-पिता को देने में उन्हें असीम सुख मिलता। लेकिन बचपन में पढ़ने की जिस भावना ने जन्म लिया था, वह आज भी हरी-भरी थी।

जॉर्ज 18 वर्ष के हो चुके थे। एक वर्ष तक मजदूरी करके जब उन्होंने थोड़ा धन अर्जित कर लिया तो मन में बरसों से दबी पढ़ाई की इच्छा फिर हावी हो गई। बचपन की इस लालसा को पूरा करने के लिए उन्होंने रात्रि पाठशाला में एडमिशन ले लिया। रोज मजदूरी खत्म करने के बाद वह नाइट स्कूल में जाते। देखते-देखते गणित में उनकी गहरी रुचि पैदा हो गई, जिसके बल पर वह बिना थियरी पढ़े न केवल सिविल व मैकेनिकल इंजीनियर कहलाए बल्कि अपने समय के डैवी जैसे वैज्ञानिकों को मात देकर खदान मजदूरों के लिए सेफ्टी लैंप बनाया। आगे चलकर हेटन क्वेलरी से संडरलैंड तक आठ मील की पहली रेल लाइन बिछाई। 1814 में ब्लूचर नामक इंजन विकसित किया और रेल पटरियों को इंजन से जोड़कर आधुनिक रेल के जनक कहलाए और औद्योगिक क्रांति को ठोस आधार प्रदान किया।

संकलन : हरिप्रसाद राय