जानें क्‍यों कन्‍हैया लगाते हैं मोरपंख, राधारानी ने दी थी यह कैसी सलाह?

राधाकृष्‍ण के प्रेम की कई सारी कहान‍ियां हैं। जिन्‍हें पढ़कर या सुनकर उनके प्रेम की पराकाष्‍ठा का अहसास होता है। लेक‍िन कुछ ऐसे भी क‍िस्‍से हैं जिन्‍हें जानकर हैरानी होती है। कृष्‍ण के स‍िर पर सजने वाला मोरपंख भी ऐसे ही एक क‍िस्‍से का हिस्‍सा बना और उसका पर‍िणाम यह रहा है क‍ि श्रीकृष्‍ण ने कल‍िकाल तक मोरपंख को अपने शीश पर लगाने का वरदान दे द‍िया। आइए इस बारे में व‍िस्‍तार से जानते हैं…

अद्भुत है राधे-कृष्‍ण की यह प्रेमकथा
कथा म‍िलती है क‍ि गोकुल में एक मोर रहता था, वह श्रीकृष्ण का अनन्‍य भक्त था। एक बार उसने श्रीकृष्ण की कृपा पाने के लिए कन्‍हैया के द्वार पर जाकर जप करने का व‍िचार क‍िया। इसके बाद वह उनके द्वार पर बैठकर कृष्‍ण-कृष्‍ण जपता रहा। जप करते हुए उसे एक बरस बीत गया लेक‍िन उसे श्रीकृष्‍ण की कृपा प्राप्‍त नहीं हुई। एक द‍िन दु:खी होकर मोर रोने लगा। तभी वहा से एक मैना उड़ती जा रही थी, उसने मोर को रोता हुए देखा तो बहुत अचंभित हुई।

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कन्‍हैया के दर पर जब रोता रहा मोर
मैना ने सोचा क‍ि यूं तो मोर क‍िसी भी कारण से रो सकता है लेक‍िन कन्‍हैया के दर पर कोई रोए यह तो अचंभित करने वाली बात है। इसके बाद मैना मोर के पास गई और रोने का कारण पूछा तब मोर ने बताया क‍ि एक बरस से मैं कन्‍हैया को प्रसन्‍न करने के ल‍िए कृष्‍ण नाम जप कर रहा हूं। लेक‍िन कन्‍हैया ने आज तक मुझे पानी भी नहीं प‍िलाया।

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मैना ने दी राधारानी की शरण में जाने की सलाह
यह सुनकर मैना बोली मैं श्रीराधेरानी के बरसना से आई हूं। तू मेरे साथ वहीं चल, राधेरानी बहुत दयालु हैं। वह तुझपर जरूर कृपा करेंगी। मोर ने मैना की बात मान ली और दोनों ही उड़ते-उड़ते बरसाना पहुंच गए। लेक‍िन मोर ने राधारानी के दर पर भी कृष्‍ण नाम का ही जप क‍िया। यह सुनते ही श्रीराधे दौड़ती हुई आईं और मोर को गले से लगा ल‍िया।

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राधा बोलीं नहीं मेरे कान्‍हा ऐसे निर्मोही नहीं
राधारानी ने मोर से पूछा तू कहां से आया है। तब मोर ने कहा क‍ि जय हो राधारानी की। आज तक सुना था की तुम करुणामयी हो और आज देख भी लिया। राधारानी बोली वह कैसे तब मोर बोला में पिछले एक बरस कन्‍हैया के द्वार पर कृष्ण नाम जप कर रहा हूं। लेक‍िन पानी प‍िलाना तो दूर उन्‍होंने तो मेरी ओर देखा तक नहीं। तब राधाजी ने कहा क‍ि नहीं मेरे कान्‍हा ऐसे निर्मोही नहीं हैं।

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राधे ने दी मोर को अनोखी सीख
क‍िशोरीजी ने कहा क‍ि फिर से तुम कन्‍हैया के द्वार पर जाओ। लेक‍िन इस बार कृष्‍ण नहीं राधे-राधे रटना। मोर ने राधा रानी की बात मान ली और लौट कर गोकुल वापस आ गया फिर से कृष्ण के द्वार पर पहुंचा और इस बार राधे-राधे रटने लगा। यह सुनते ही कृष्‍ण दौड़े चले आए और मोर से पूछा तुम कहां से आए हो? तब मोर ने कहा हे माधव एक बरस से तुम्‍हारा नाम संकीर्तन कर रहा था तब तो तुमने मुझे पानी तक नहीं प‍िलाया आज राधे-राधे जपने पर दौड़े चले आए।

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राधे का नाम जपना सौभाग्‍य की बात है
मोर की बात सुनकर कृष्णजी बोले मैंने तुझको कभी पानी नहीं पिलाया यह मैंने पाप किया है। लेक‍िन तूने राधा का नाम लिया, यह तेरा सौभाग्य है। इसलिए मैं तुझको वरदान देता हूं कि जब तक यह सृष्टि रहेगी, तेरा पंख सदैव ही मेरे शीश पर विराजमान होगा। साथ ही जो भी भक्‍त क‍िशोरीजी का नाम लेगा वह भी मेरे शीश पर रहेगा।

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