पूजन के निमित्त वास्तु अनुसार सर्वप्रथम घर के उत्तर और पूर्व के बीच के स्थान को साफ-सुथरा कर देवपूजन के अनुरूप बनाना चाहिए। वास्तुशास्त्र में पूर्व और उत्तर के कोने को ईशान कोण कहते हैं, ईशान से ही लक्ष्मी का प्रवेश होता है, अतः इसी स्थान पर दीपावली पूजन करना चाहिए। आइए, जानते हैं वास्तु नियम।
- घर के पूजाघर में रखी विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्ति, चित्रों में से जो भी खंडित हो गई हों या जो यंत्र धूमिल पड़ गए हों, उन्हें हटाकर उनके स्थान पर नई मूर्ति, यंत्र आदि की स्थापना दीपावली पर करनी चाहिए। यंत्रों में बनी आकृति का विशेष महत्व होता है, अगर वह आकृति कहीं से मिट गई हो तो उस यंत्र को घर पर रखने से उर्जा का असंतुलन बनता है जिससे उसका कुप्रभाव कार्यों को बाधित करता है।
- दीपावली से पहले घर में अगर कोई बल्ब, ट्यूबलाइट फ्यूज हो गई हो तो उसे बदलकर उस स्थान पर नया बल्ब लगाएं। दीपावली की सफाई के दौरान घर-कार्यालय की उन सभी वस्तुओं को हटा देना चाहिए जिनका अब उपयोग नहीं रह गया है। अक्सर अनुपयोगी खराब वस्तुओं को बाद में ठीक करवाने लेने की सोचकर लोग उस कबाड़ को सालों घर में संजो कर रखते हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार इससे उत्पन्न होने वाली नकारात्मक उर्जा सुख-समृद्धि को बाधित करती है। अतः इस दीपावली पर जितना हो सके।उतना घर से कबाड़ को बाहर निकालना चाहिए, इससे घर से दिलद्दर दूर होता है और लक्ष्मी काआगमन होता है।
- घर के मुख्य द्वार पर ओम्, स्वास्तिक, त्रिशूल, कलश आदि मांगलिक चिह्न दीपावली के अवसर पर अंकित करना चाहिए, साथ ही आम, अशोक की पत्तियों की माला तोरण के रूप में घर की प्रत्येक चौखट पर लगानी चाहिए, यह सभी वस्तुएं लक्ष्मी जी को अतिप्रिय हैं।
- घर के मुख्य द्वार पर रोशनी की कमी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि लक्ष्मी का आगमन स्वच्छ, सुन्दर स्थान पर ही होता है। अमावस्या की काली अंधेरी रात के अंधियारे का दीपावली के जगमग करते दीयों के प्रकाश से नाश होता है, भवन पर प्रकाश ही जगमगाहट करते समय भवन के पर्वू-उत्तर हिस्से में पीले एवं लाल बल्बों से युक्त लड़ी लगानी चाहिए।