डांडी मार्च के दौरान गांधीजी को इस पर पैसा खर्च करना लगा फिजूलखर्ची

नमक कानून तोड़ने के लिए गांधीजी डांडी मार्च कर रहे थे। इस यात्रा में गांधीजी के साथ सरोजिनी नायडू, गांधीजी के सचिव प्यारेलाल के अलावा और भी सहयोगी शामिल थे। गांधीजी यात्राओं के दौरान पानी पीने के लिए मिट्टी का एक प्याला रखते थे। उनके सचिव प्यारेलाल को लगा कि बापू जिस मिट्टी के प्याले में पानी पीते हैं वह ऊपर से टूट गया है। इसे क्यों न बदल दिया जाए। वह प्याला खरीदने बाजार गए। एक प्याला छह पैसे का था। पर आठ पैसे देने पर दो प्याले मिल जाते। प्यारेलाल ने दो प्याले खरीद लिए।

शाम को यात्रा से लौटने के बाद गांधीजी, सरोजिनी नायडू और अपने सभी सहयोगियों के साथ भोजन करने बैठे। भोजन के समय गांधीजी ने पानी पीते समय नया प्याला देखा तो प्यारेलाल से पूछा, ‘वह पुराना वाला प्याला कहां गया?’ प्यारेलाल ने कहा, ‘बापू, वह टूट रहा था। इसलिए हमने बदल दिया। बाजार में दुकानदार एक प्याला छह पैसे में दे रहा था और दो प्याले आठ पैसे में, तो मैंने आठ पैसे में दो प्याले ले लिए।’ प्यारेलाल के बिना जरूरत दो प्याले खरीदने की बात सुनकर गांधीजी चौंके। यह फिजूलखर्च उन्हें नहीं रुचा।

गांधीजी ने सचिव से पूछा, ‘क्या आपको अभी से मालूम है कि दूसरा प्याला कब टूटेगा? जब नए की जरूरत होती तब देखा जाता। क्या आप जानते हैं कि आप कितने दिन जिएंगे? जिस चीज की जरूरत नहीं है उसे अपने पास इकट्ठा क्यों करते हो? उसके लिए पहले से इंतजाम करके क्यों बैठे हुए हो? अब इस यात्रा में एक वजन मेरे ऊपर आपने और लाद दिया। मैं अब एक की जगह दो प्याले लेकर चलूं?’ गांधीजी का कहना था, जरूरत थी तो एक प्याला खरीद लेते। सस्ते के चक्कर में संग्रह नहीं करना चाहिए। इस घटना का जिक्र मीराबेन ने अपनी किताब में भी किया है।– संकलन : रिंकल शर्मा